Wednesday, September 2, 2020

||Babul Tum Bagiya Ke Taruvar || HindiPoetry || PoemNagari || Gopal Singh Nepali

इस कविता में एक बेटी अपने पिता से  अपनी मनोदशा बताती हैं कि इस रूढ़िवादी समाज में एक पिता द्वारा बेटी को कैसे देखा जाता है और बाद में जब वह एक बेटी से पत्नी और पत्नी से मां बनती है तो समाज का दृष्टिकोण किस रूप से उसे आघात पहुंचाती है यह कविता जैसे-जैसे आगे बढ़ती है समाज के अनेकों कुरितियो को उजागर करती है, समाज की सच्ची आईना बन कर एक बेटी अपने बाप को इस पुरुष प्रधान समाज की बेड़ियों में जकड़ी नारी जीवन की व्यथा का आभास कराती है .....

बाबुल तुम बगिया के तरुवर 

 गोपाल सिंह नेपाली 

 

बाबुल तुम बगिया के तरुवर, हम तरुवर की चिड़ियाँ रे


दाना चुगते उड़ जाएँ हम, पिया मिलन की घड़ियाँ रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें, ज्यों मोती की लडियां रे


बाबुल तुम बगिया के तरुवर …….

आँखों से आँसू निकले तो पीछे तके नहीं मुड़के


घर की कन्या वन का पंछी, फिरें न डाली से उड़के


बाजी हारी हुई त्रिया की


जनम -जनम सौगात पिया की


बाबुल तुम गूंगे नैना, हम आँसू की फुलझड़ियाँ रे


उड़ जाएँ तो लौट न आएँ ज्यों मोती की लडियाँ रे

हमको सुध न जनम के पहले , अपनी कहाँ अटारी थी


आँख खुली तो नभ के नीचे , हम थे गोद तुम्हारी थी


ऐसा था वह रैन -बसेरा


जहाँ सांझ भी लगे सवेरा


बाबुल तुम गिरिराज हिमालय , हम झरनों की कड़ियाँ रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

छितराए नौ लाख सितारे , तेरी नभ की छाया में


मंदिर -मूरत , तीरथ देखे , हमने तेरी काया में


दुःख में भी हमने सुख देखा


तुमने बस कन्या मुख देखा


बाबुल तुम कुलवंश कमल हो , हम कोमल पंखुड़ियां रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

बचपन के भोलेपन पर जब , छिटके रंग जवानी के


प्यास प्रीति की जागी तो हम , मीन बने बिन पानी के


जनम -जनम के प्यासे नैना


चाहे नहीं कुंवारे रहना


बाबुल ढूंढ फिरो तुम हमको , हम ढूंढें बावरिया रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

चढ़ती उमर बढ़ी तो कुल -मर्यादा से जा टकराई


पगड़ी गिरने के डर से , दुनिया जा डोली ले आई


मन रोया , गूंजी शहनाई


नयन बहे , चुनरी पहनाई


पहनाई चुनरी सुहाग की , या डाली हथकड़ियां रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

मंत्र पढ़े सौ सदी पुराने , रीत निभाई प्रीत नहीं


तन का सौदा कर के भी तो , पाया मन का मीत नहीं


गात फूल सा , कांटे पग में


जग के लिए जिए हम जग में


बाबुल तुम पगड़ी समाज के , हम पथ की कंकरियां रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

मांग रची आंसू के ऊपर , घूंघट गीली आँखों पर


ब्याह नाम से यह लीला ज़ाहिर करवाई लाखों पर

नेह लगा तो नैहर छूटा , पिया मिले बिछुड़ी सखियाँ


प्यार बताकर पीर मिली तो नीर बनीं फूटी अंखियाँ


हुई चलाकर चाल पुरानी


नयी जवानी पानी पानी


चली मनाने चिर वसंत में , ज्यों सावन की झाड़ियाँ रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

देखा जो ससुराल पहुंचकर , तो दुनिया ही न्यारी थी


फूलों सा था देश हरा , पर कांटो की फुलवारी थी


कहने को सारे अपने थे


पर दिन दुपहर के सपने थे


मिली नाम पर कोमलता के , केवल नरम कांकरिया रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

वेद-शास्त्र थे लिखे पुरुष के , मुश्किल था बचकर जाना


हारा दांव बचा लेने को , पति को परमेश्वर जाना


दुल्हन बनकर दिया जलाया


दासी बन घर बार चलाया


माँ बनकर ममता बांटी तो , महल बनी झोंपड़िया रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

मन की सेज सुला प्रियतम को , दीप नयन का मंद किया


छुड़ा जगत से अपने को , सिंदूर बिंदु में बंद किया


जंजीरों में बाँधा तन को


त्याग -राग से साधा मन को


पंछी के उड़ जाने पर ही , खोली नयन किवाड़ियाँ रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

जनम लिया तो जले पिता -माँ , यौवन खिला ननद -भाभी


ब्याह रचा तो जला मोहल्ला , पुत्र हुआ तो बंध्या भी


जले ह्रदय के अन्दर नारी


उस पर बाहर दुनिया सारी


मर जाने पर भी मरघट में , जल - जल उठी लकड़ियाँ रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे

जनम -जनम जग के नखरे पर , सज -धजकर जाएँ वारी

पहले गए पिया जो हमसे अधम बने हम यहाँ अधम से


पहले ही हम चल बसें , तो फिर जग बाटें रेवड़ियां रे


उड़ जाएँ तो लौट न आयें , ज्यों मोती की लडियां रे









No comments:

Post a Comment

जो जीवन ना बन सका ! || That Could Not Be Life ! || PoemNagari || Hindi Kavita

कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द  जो जीवन ना बन सके बस छाया या  उस जैसा कुछ बनके  ख...