Saturday, September 26, 2020

| Dono Or Prem Palata Hai | HindiPoetry |PoemNagari |Maithali Sharan Gupt

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (3 अगस्त 1886 – 12 दिसम्बर 1964) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती 3 अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। सन 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।

प्रस्तुत कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गई है।

दोनों ओर प्रेम पलता है !





दोनों ओर प्रेम पलता है।


सखि, पतंग भी जलता है हा! दीपक भी जलता है!

सीस हिलाकर दीपक कहता--


’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’


पर पतंग पड़ कर ही रहता


कितनी विह्वलता है!


दोनों ओर प्रेम पलता है।


बचकर हाय! पतंग मरे क्या?


प्रणय छोड़ कर प्राण धरे क्या?


जले नही तो मरा करे क्या?


क्या यह असफलता है!


दोनों ओर प्रेम पलता है।


कहता है पतंग मन मारे--


’तुम महान, मैं लघु, पर प्यारे,


क्या न मरण भी हाथ हमारे?


शरण किसे छलता है?’


दोनों ओर प्रेम पलता है।


दीपक के जलने में आली,


फिर भी है जीवन की लाली।


किन्तु पतंग-भाग्य-लिपि काली,


किसका वश चलता है?


दोनों ओर प्रेम पलता है।


जगती वणिग्वृत्ति है रखती,


उसे चाहती जिससे चखती;


काम नहीं, परिणाम निरखती।


मुझको ही खलता है।


दोनों ओर प्रेम पलता है।

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