Tuesday, July 27, 2021

तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है|तुझे अलग से जो सोचूँ अजीब लगता है |जां निसार अख़्तर|Urdu Shayari|Hindi Poetry|By Kishor |PoemNagari

Jan Nisar Akhtar (18 February 1914 – 19 August 1976) was an Indian poet of Urdu ghazals and nazms, and a part of the Progressive Writers' Movement, who was also a lyricist for Bollywood.

तू इस क़दर मुझे अपने क़रीब लगता है 

तुझे अलग से जो सोचूँ अजीब लगता है 

जिसे न हुस्न से मतलब न इश्क़ से सरोकार 

वो शख़्स मुझ को बहुत बद-नसीब लगता है 

हुदूद-ए-ज़ात से बाहर निकल के देख ज़रा 

न कोई ग़ैर न कोई रक़ीब लगता है 

ये दोस्ती ये मरासिम ये चाहतें ये ख़ुलूस 

कभी कभी मुझे सब कुछ अजीब लगता है 

उफ़ुक़ पे दूर चमकता हुआ कोई तारा 

मुझे चराग़-ए-दयार-ए-हबीब लगता है

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