PoemNagari
Poem Nagari में आपका स्वागत हैं !!! Please Follow Us On Youtube #PoemNagari
Friday, September 29, 2023
जो जीवन ना बन सका ! || That Could Not Be Life ! || PoemNagari || Hindi Kavita
Saturday, April 23, 2022
Is nadee kee dhaar mein thandee hava aatee to hai || Dushyant Kumar || Hindi Poetry || PoemNagari
प्रस्तुत कविता दुष्यंत कुमार जी द्वारा लिखित है।
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
Sunday, April 17, 2022
Wakt Ne Chor Kaha || Gulzar || Hindi Poetry || PoemNagari #वक्त_ने_चोर_कहा #गुलज़ार_साहब_की_कविता
प्रस्तुत कविता गुलज़ार जी द्वारा लिखित है।
कविता का शीर्षक - वक्त ने चोर कहा
वक्त की आँख पे पट्टी बांध के
चोर सिपाही खेल रहे थे ..
रात और दिन और चाँद और मैं ..
जाने कैसे इस गर्दिश में अटका पाँव ,
दूर गिरा जा कर मैं जैसे ,
रौशनियों के धक्के से परछाई जमीं पर गिरती हैं ।
धेय्या छोने से पहले ही ..
वक्त ने चोर कहा
और आँखे खोल के
मुझको पकड लिया ...
Main Jise Odhata- Bichhata hoon || Dushyant Kumar || Hindi Poetry || PoemNagari
प्रस्तुत कविता दुष्यंत कुमार जी द्वारा लिखित है।
मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
#तू_किसी_रेल_सी_गुज़रती_है
#मैं_किसी_पुल_सा_थरथराता_हूँ
हर तरफ़ ऐतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
एक बाज़ू उखड़ गया जबसे
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ
Tuesday, March 29, 2022
If by Rudyard Kipling ( A Life Changing Poem ) || PoemNagari
परंपरा ||हिन्दी कविता || रामधारी सिंह दिनकर || PoemNagari
Friday, March 25, 2022
उतनी दूर पिया तू मेरे गांव से ||हिन्दी कविता || कुंअर बेचैन ||PoemNagari #love #poetry #hindipoetry
प्रस्तुत कविता कुंअर बेचैन जी द्वारा लिखित है।
कविता का शीर्षक - उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
लेखक - कुंअर बेचैन
जितनी दूर नयन से सपना
जितनी दूर अधर से हँसना
बिछुए जितनी दूर कुँआरे पाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
हर पुरवा का झोंका तेरा घुँघरू
हर बादल की रिमझिम तेरी भावना
हर सावन की बूंद तुम्हारी ही व्यथा
हर कोयल की कूक तुम्हारी कल्पना
जितनी दूर ख़ुशी हर ग़म से
जितनी दूर साज सरगम से
जितनी दूर पात पतझर का छाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
हर पत्ती में तेरा हरियाला बदन
हर कलिका के मन में तेरी लालिमा
हर डाली में तेरे तन की झाइयाँ
हर मंदिर में तेरी ही आराधना
जितनी दूर प्यास पनघट से
जितनी दूर रूप घूंघट से
गागर जितनी दूर लाज की बाँह से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
कैसे हो तुम, क्या हो, कैसे मैं कहूँ
तुमसे दूर अपरिचित फिर भी प्रीत है
है इतना मालूम की तुम हर वस्तु में
रहते जैसे मानस् में संगीत है
जितनी दूर लहर हर तट से
जितनी दूर शोख़ियाँ लट से
जितनी दूर किनारा टूटी नाव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
पड़ोसी ||हिन्दी कविता || अटल बिहारी वाजपेयी || काश्मीर पर भारत का नजरिया ||PoemNagari #hindipoetry
प्रस्तुत कविता अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा लिखित है।
कविता का शीर्षक - पड़ोसी
लेखक - अटल बिहारी वाजपेयी
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
बलिदानो से अर्जित यह स्वतन्त्रता,
अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता।
त्याग तेज तपबअगणितल से रक्षित यह स्वतन्त्रता,
दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता।
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो,
चिनगारी का खेल बुरा होता है ।
औरों के घर आग लगाने का जो सपना,
वो अपने ही घर में सदा खरा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो,
अपने पैरों आप कुल्हाडी नहीं चलाओ।
ओ नादान पडोसी अपनी आँखे खोलो,
आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ।
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है?
तुम्हे मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई।
अंग्रेजों के बल पर दो टुकडे पाये हैं,
माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई?
अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो।
दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से
तुम बच लोगे यह मत समझो।
धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो।
हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो।
जब तक गंगा मे धार, सिंधु मे ज्वार,
अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,
स्वातन्त्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे
अगणित जीवन यौवन अशेष।
अमरीका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध,
काश्मीर पर भारत का सर नही झुकेगा
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा ।
Wednesday, March 23, 2022
हिरोशिमा की पीड़ा || हिन्दी कविता || अटल बिहारी वाजपेयी || PoemNagari
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं || हिन्दी कविता || अटल बिहारी वाजपेयी || PoemNagari
समय से अनुरोध || हिन्दी कविता | अशोक वाजपेयी || PoemNagari
जो जीवन ना बन सका ! || That Could Not Be Life ! || PoemNagari || Hindi Kavita
कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द जो जीवन ना बन सके बस छाया या उस जैसा कुछ बनके ख...
-
प्रस्तुत कविता अशोक वाजपेयी जी द्वारा लिखित है । समय, मुझे सिखाओ कैसे भर जाता है घाव?-पर एक अदृश्य फाँस दुखती रहती है जीवन-भर| स...
-
कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द जो जीवन ना बन सके बस छाया या उस जैसा कुछ बनके ख...