प्रस्तुत कविता गुलज़ार जी द्वारा लिखित है।
कविता का शीर्षक - वक्त ने चोर कहा
वक्त की आँख पे पट्टी बांध के
चोर सिपाही खेल रहे थे ..
रात और दिन और चाँद और मैं ..
जाने कैसे इस गर्दिश में अटका पाँव ,
दूर गिरा जा कर मैं जैसे ,
रौशनियों के धक्के से परछाई जमीं पर गिरती हैं ।
धेय्या छोने से पहले ही ..
वक्त ने चोर कहा
और आँखे खोल के
मुझको पकड लिया ...
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