फिर मैंने अपनी बैग से हाफ बंडी वाला जैकेट निकाल कर पहन ली ,तब जाकर राहत मिली , एक बात और मैं इसके पहले शायद ही कभी बस की छत पर बैठा था, मैं काफी डरता हूं इसलिए छत पर बैठकर सफर करना, मेरे बस की बात नहीं है परंतु समस्या यह थी कि जब मैं मामा जी के घर से अपने घर आया ,तो उस समय से फिर मुझे मोतिहारी आना अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि मैं थक गया था ,परंतु मुझे आज ही पहुंचना था इसलिए घर वालों ने चावल ,दाल ,आटा, मसाले एवं एक बोतल दूध मेरे साथ दे दिया उसे भी लाना था अब मैं अपने चौक पर खड़े होकर बस का इंतजार करने लगा, समय काफी बित चुका था ,अचानक एक बस आती हुई दिखाई दी मैं खुश हुआ ,चलो आखिरकार बस तू आई ,लेकिन यह क्या !बस पूरी तरह भरी हुई थी ,कंडक्टर ने आने का इशारा किया ,मैंने सीधे मना कर दिया ,जगह नहीं है तो मैं नहीं जाऊंगा, पर वह बहुत ही प्यार से बोला -"इसके बाद कोई भी बस नहीं है ,मैं आदापुर तक आपको सीट दिला दूंगा ,भरोसा रखिए "उसने मेरे दाल -चावल की बोरी को पीछे के डिक्की में रख दी,थोड़ी देर के लिए ऊपर जाकर बैठने का इशारा किया मजे की बात यह है कि घर से लेकर मोतिहारी तक बस में लोगों की संख्या बढ़ती गई ,अब मैं चुपचाप छत पर बैठे सुंदर और मनभावन इस प्रकृति को अनुभव करता रहा....
सफर अभी भी जारी है ०००००००००००
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