भवानी प्रसाद मिश्र (जन्म: २९ मार्च १९१४ - मृत्यु: २० फ़रवरी १९८५) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वह 'दूसरा सप्तक' के प्रथम कवि हैं। गांंधी-दर्शन का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। उनका प्रथम संग्रह 'गीत-फ़रोश' अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुआ। प्यार से लोग उन्हें भवानी भाई कहकर सम्बोधित किया करते थे।
उन्होंने स्वयं को कभी भी निराशा के गर्त में डूबने नहीं दिया। जैसे सात-सात बार मौत से वे लड़े वैसे ही आजादी के पहले गुलामी से लड़े और आजादी के बाद तानाशाही से भी लड़े। आपातकाल के दौरान नियम पूर्वक सुबह-दोपहर-शाम तीनों वेलाओं में उन्होंने कवितायें लिखी थीं जो बाद में त्रिकाल सन्ध्या नामक पुस्तक में प्रकाशित भी हुईं।
भवानी भाई को १९७२ में उनकी कृति बुनी हुई रस्सी पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। १९८१-८२ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा १९८३ में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया।
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़
भवानीप्रसाद मिश्र »
अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़,
दोनों मूरख, दोनों अक्खड़,
हाट से लौटे, ठाट से लौटे,
एक साथ एक बाट से लौटे ।
बात बात में बात ठन गई,
बांह उठी और मूछ तन गई,
इसने उसकी गर्दन भींची
उसने इसकी दाढ़ी खींची ।
अब वह जीता, अब यह जीता
दोनों का बन चला फजीता;
लोग तमाशाई जो ठहरे —
सबके खिले हुए थे चेहरे !
मगर एक कोई था फक्कड़,
मन का राजम कर्रा-कक्कड़;
बढ़ा भीड़ को चीर-चार कर
बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर ।
अक्कड़ मक्कड़ धुल में धक्कड़
दोनों मूरख दोनों अक्कड़,
गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा,
सही बात पर झुकना पड़ा !
उसने कहा, सही वाणी में
डूबो चुल्लू-भर पानी में;
ताकत लड़ने में मत खोओ
चलो भाई-चारे को बोओ !
खाली सब मैदान पड़ा है
आफत का शैतान खड़ा है
ताकत ऐसे ही मत खोओ;
चलो भाई-चारे को बोओ !
सूनी मूर्खों ने जब बानी,
दोनों जैसे पानी-पानी;
लड़ना छोड़ा अलग हट गए,
लोग शर्म से गले, छंट गए ।
सबको नाहक लड़ना अखरा,
ताकत भूल गई सब नखरा;
गले मिले तब अक्कड़ मक्कड़
ख़त्म हो गया धूल में धक्कड़ !
मिश्र जी की कुछ उल्लेखनीय कृतियाँ हैं-
ये कोहारे मात्र हैं
त्रिकाल संध्या,
तुस की आग,
कुछ नीति कुछ राजनीति
कठपुतली कविता
सतपुड़ा के घने जंगल (कविता)
दर्द दर्द (कविता)
घर की यादे (कविता)।