Wednesday, August 12, 2020

||Akkad Makkad, Dhool Me Dhakkad|| HindiPoetry ||Bhawani Prasad Mishra 

This poem is written by Bhawani Prasad Mishra

भवानी प्रसाद मिश्र (जन्म: २९ मार्च १९१४ - मृत्यु: २० फ़रवरी १९८५) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वह 'दूसरा सप्तक' के प्रथम कवि हैं। गांंधी-दर्शन का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। उनका प्रथम संग्रह 'गीत-फ़रोश' अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुआ। प्यार से लोग उन्हें भवानी भाई कहकर सम्बोधित किया करते थे।


उन्होंने स्वयं को कभी भी निराशा के गर्त में डूबने नहीं दिया। जैसे सात-सात बार मौत से वे लड़े वैसे ही आजादी के पहले गुलामी से लड़े और आजादी के बाद तानाशाही से भी लड़े। आपातकाल के दौरान नियम पूर्वक सुबह-दोपहर-शाम तीनों वेलाओं में उन्होंने कवितायें लिखी थीं जो बाद में त्रिकाल सन्ध्या नामक पुस्तक में प्रकाशित भी हुईं।

भवानी भाई को १९७२ में उनकी कृति बुनी हुई रस्सी पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। १९८१-८२ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा १९८३ में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया।


अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़

 भवानीप्रसाद मिश्र »

अक्कड़ मक्कड़, धूल में धक्कड़,


दोनों मूरख, दोनों अक्खड़,


हाट से लौटे, ठाट से लौटे,


एक साथ एक बाट से लौटे ।

बात बात में बात ठन गई,


बांह उठी और मूछ तन गई,


इसने उसकी गर्दन भींची


उसने इसकी दाढ़ी खींची ।

अब वह जीता, अब यह जीता


दोनों का बन चला फजीता;


लोग तमाशाई जो ठहरे —


सबके खिले हुए थे चेहरे !

मगर एक कोई था फक्कड़,


मन का राजम कर्रा-कक्कड़;


बढ़ा भीड़ को चीर-चार कर


बोला ‘ठहरो’ गला फाड़ कर ।

अक्कड़ मक्कड़ धुल में धक्कड़


दोनों मूरख दोनों अक्कड़,


गर्जन गूंजी, रुकना पड़ा,


सही बात पर झुकना पड़ा !

उसने कहा, सही वाणी में


डूबो चुल्लू-भर पानी में;


ताकत लड़ने में मत खोओ


चलो भाई-चारे को बोओ !

खाली सब मैदान पड़ा है


आफत का शैतान खड़ा है


ताकत ऐसे ही मत खोओ;


चलो भाई-चारे को बोओ !

सूनी मूर्खों ने जब बानी,


दोनों जैसे पानी-पानी;


लड़ना छोड़ा अलग हट गए,


लोग शर्म से गले, छंट गए ।

सबको नाहक लड़ना अखरा,


ताकत भूल गई सब नखरा;


गले मिले तब अक्कड़ मक्कड़


ख़त्म हो गया धूल में धक्कड़ !



मिश्र जी की कुछ उल्लेखनीय कृतियाँ हैं-


 ये कोहारे मात्र हैं


 त्रिकाल संध्या,


 तुस की आग,


 कुछ  नीति कुछ राजनीति


 कठपुतली कविता


 सतपुड़ा के घने जंगल (कविता)


 दर्द दर्द (कविता)


 घर की यादे (कविता)।


Tuesday, August 11, 2020

|| Yadi Main Kahu || HindiPoetry || Shailendra

यह कविता शैलेंद्र द्वारा लिखी गई है,

यदि मैं कहूं

यदि मैं कहूं कि तुम बिन मानिनि


व्यर्थ ज़िन्दगी होगी मेरी,


नहीं हंसेगा चांद हमेशा


बनी रहेगी घनी अंधेरी--


बोलो, तुम विश्वास करोगी ?


    यदि मैं कहूं कि हे मायाविनि

तुमने तन में प्राण भरा है,

और तुम्हीं ने क्रूर मरण के

कुटिल करों से मुझे हरा है--

बोलो, तुम विश्वास करोगी  ?

यदि मैं कहूं कि तुम बिन स्वामिनि,

टूटेगा मन का इकतारा,

बिखर जाएंगे स्वप्न

सूख जाएगी मधु-गीतों की धारा--

बोलो, तुम विश्वास करोगी  ?


शैलेंद्र (30 अगस्त 1923 - 14 दिसंबर 1966) एक लोकप्रिय भारतीय हिंदी-उर्दू गीतकार थे। फिल्म निर्माता राज कपूर, गायक मुकेश, और संगीतकार शंकर-जयकिशन के साथ अपने जुड़ाव के लिए, उन्होंने कई सफल हिंदी फ़िल्मी गीतों के लिए गीत लिखे।  1950 और 1960 का दशक।

 शैलेन्द्र के पुत्र शैले शैलेन्द्र भी गीतकार बने।  17 साल की उम्र में, राज कपूर ने उन्हें अपने पिता के गीत जीना यहा, फिल्म मेरा नाम जोकर के लिए  'जीना यहां मारना यहां' गीत को  पूरा करने के लिए कहा।  Shaily Shailendra ने गीत का "mukhra" पूरा किया जबकि शैलेंद्र ने "antara" को उनके निधन से पहले ही पूरा कर लिया।  गीतकार, लेखक और निर्देशक गुलज़ार ने कई मौकों पर कहा है कि शैलेंद्र हिंदी फ़िल्म उद्योग द्वारा निर्मित सर्वश्रेष्ठ गीतकार थे।

 शैलेंद्र के गीत मेरा जूता है जापानी को 2016 की अंग्रेजी भाषा की फिल्म ' Deadpool  'में दिखाया गया था।

 शैलेंद्र के लिखे कुछ लोकप्रिय गीतों में शामिल हैं:

 "सुहाना सफर और ये" - "मधुमती"

 "चलत मुसाफिर मोह लिया रे" - "तिसरी कसम"

 "ये मेरा दीवानापन है" - "यहुदी"

 "दिल का हाल सुने दिलवाला" - "श्री 420"

 "तू प्यार का सागर है" - "सीमा"

 "ये रात भीगी भीगी" - "चोरी चोरी"

 "पान खाए सईया हमारो" - "तीसरी कसम"

 "ओ सजना, बरखा बहार आई" - "परख (1960 फिल्म)"

 "आजा ऐ बहार" - "राजकुमार"

 "रुक जा रात, थार जा रे चंदा" - "दिल एक मंदिर"

 "याद ना जाए बीते दिनों  की" - "दिल एक मंदिर"

 "चढ गयो पापी बिछुआ" - "मधुमती"

 "आवारा हूं" - आवारा

 "रमैया वस्तावैया" - श्री 420

 "मुड मुड के ना देख" - श्री ४२०

 "मेरा जूट है जापानी" - श्री 420

 "आज फिर जीने की" - गाइड

 "गाता रहे मेरा दिल" - गाइड

 "पिया तोसे नैना लागे रे" - गाइड

 "क्या से क्या हो गया" - गाइड

 "दिन ढल जाए है" - गाइड

 "हर दिल जो प्यार करेगा" - संगम

 "दोस्त दो ना राह" - संगम

 "सब कुछ सीखा" - अनारी

 "किसी की मुस्कराहटो पे" - अनारी

 "दिल की नज़र से" - अनाड़ी

 "खोया खोया चाँद" - काला बाजार

 "प्यार हुआ इकरार हुआ" - श्री 420

 "अजीब दास्तान है ये" - दिल अपना और प्रीत पराई

 "झूमती चली हवा" - संगीत सम्राट तानसेन

 "जीना यार मारना येहन" - मेरा नाम जोकर

 "नाचे मन मोरा मगन" - "मेरी सूरत तेरी अँखें"

 "सजन रे झूले मत बोलो" - "तीसरी कसम"

 "रात के हमसफ़र, थके के  घर को चले" - "पेरिस में एक शाम"

 "तू ज़िन्दा है ज़िन्दगी के लिए जीत याकेन कर"

अद्भुत है इनकी रचनाएं !



Saturday, August 8, 2020

||Chand Ek Din || Hindi Poetry || PoemNagari ||Ramdhari Singh 'Dinkar'

चांद एक दिन                                  

 रामधारी सिंह "दिनकर" 

 

हठ कर बैठा चान्द एक दिन, माता से यह बोला,


सिलवा दो माँ मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला ।


सन-सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता हूँ,


ठिठुर-ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ ।

आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का,


न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का ।



बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`,


कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने ।

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,


एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ ।


कभी एक अँगुल भर चौड़ा, कभी एक फ़ुट मोटा,


बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा ।

घटता-बढ़ता रोज़, किसी दिन ऐसा भी करता है


नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है


अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज़ लिवाएँ


सी दे एक झिंगोला जो हर रोज़ बदन में आए !

(अब चान्द का जवाब सुनिए।)

हंसकर बोला चान्द, अरे माता, तू इतनी भोली ।


दुनिया वालों के समान क्या तेरी मति भी डोली ?


घटता-बढ़ता कभी नहीं मैं वैसा ही रहता हूँ ।


केवल भ्रमवश दुनिया को घटता-बढ़ता लगता हूंँ ।

आधा हिस्सा सदा उजाला, आधा रहता काला ।


इस रहस्य को समझ न पाता भ्रमवश दुनिया वाला ।


अपना उजला भाग धरा को क्रमशः दिखलाता हूँ ।


एक्कम दूज तीज से बढ़ता पूनम तक जाता हूँ ।

फिर पूनम के बाद प्रकाशित हिस्सा घटता जाता ।


पन्द्रहवाँ दिन आते-आते पूर्ण लुप्त हो जाता ।


दिखलाई मैं भले पड़ूँ ना यात्रा हरदम जारी ।


पूनम हो या रात अमावस चलना ही लाचारी ।

चलता रहता आसमान में नहीं दूसरा घर है ।


फ़िक्र नहीं जादू-टोने की सर्दी का, बस, डर है ।


दे दे पूनम की ही साइज का कुर्ता सिलवा कर ।


आएगा हर रोज़ बदन में इसकी मत चिन्ता कर।

अब तो सर्दी से भी ज़्यादा एक समस्या भारी ।


जिसने मेरी इतने दिन की इज़्ज़त सभी उतारी ।


कभी अपोलो मुझको रौंदा लूना कभी सताता ।


मेरी कँचन-सी काया को मिट्टी का बतलाता ।

मेरी कोमल काया को कहते राकेट वाले


कुछ ऊबड़-खाबड़ ज़मीन है, कुछ पहाड़, कुछ नाले ।


चन्द्रमुखी सुन कौन करेगी गौरव निज सुषमा पर ?


खुश होगी कैसे नारी ऐसी भद्दी उपमा पर ।

कौन पसन्द करेगा ऐसे गड्ढों और नालों को ?


किसकी नज़र लगेगी अब चन्दा से मुख वालों को ?


चन्द्रयान भेजा अमरीका ने भेद और कुछ हरने ।


‌रही सही जो पोल बची थी उसे उजागर करने ।

एक सुहाना भ्रम दुनिया का क्या अब मिट जाएगा ?


नन्हा-मुन्ना क्या चन्दा की लोरी सुन पाएगा ?


अब तो तू ही बतला दे माँ कैसे लाज बचाऊँ ?


ओढ़ अन्धेरे की चादर क्या सागर में छिप जाऊँ ?

|| Maine Aahuti Bankar Dekha || Hindi Poetry || PoemNagari || Ageyeya

यह कविता अज्ञेय द्वारा लिखी गई है

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन (7 March 1911 – 4 April 1987 ) जो अज्ञेय नाम से प्रसिद्ध  है जिसका अर्थ है 'अनजाने' ।  एक भारतीय लेखक, कवि, उपन्यासकार, साहित्यिक आलोचक, पत्रकार, अनुवादक और क्रांतिकारी थे।  हिंदी भाषा में।  उन्होंने हिंदी कविता में और साथ ही कथा, आलोचना और पत्रकारिता में आधुनिक रुझानों का नेतृत्व किया।  उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य में प्रयोगवाद  आंदोलनों का अग्रणी माना जाता है ,इनकी यह रचन वास्तव में नई पीढ़ी को एक सही मार्ग दिखती है ,प्रस्तुत कविता बहुत सुंदर ढंग से जीवन के विभिन्न आयामों को छू जाती है ,यह एहसास कराती है वास्तव में जीवन की संघर्ष में कैसे मजबूती से रहना होता है,

मैंने आहुति बन कर देखा 


 अज्ञेय 


    

मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने,

मैं कब कहता हूँ जीवन-मरू नंदन-कानन का फूल बने ?

काँटा कठोर है, तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है,

मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ?


मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले ?

मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?

मैं कब कहता हूँ विजय करूँ मेरा ऊँचा प्रासाद बने ?

या पात्र जगत की श्रद्धा की मेरी धुंधली-सी याद बने ?


पथ मेरा रहे प्रशस्त सदा क्यों विकल करे यह चाह मुझे ?

नेतृत्व न मेरा छिन जावे क्यों इसकी हो परवाह मुझे ?

मैं प्रस्तुत हूँ चाहे मेरी मिट्टी जनपद की धूल बने-

फिर उस धूली का कण-कण भी मेरा गति-रोधक शूल बने !


अपने जीवन का रस देकर जिसको यत्नों से पाला है-

क्या वह केवल अवसाद-मलिन झरते आँसू की माला है ?

वे रोगी होंगे प्रेम जिन्हें अनुभव-रस का कटु प्याला है-

वे मुर्दे होंगे प्रेम जिन्हें सम्मोहन कारी हाला है


मैंने विदग्ध हो जान लिया, अन्तिम रहस्य पहचान लिया-

मैंने आहुति बन कर देखा यह प्रेम यज्ञ की ज्वाला है !

मैं कहता हूँ, मैं बढ़ता हूँ, मैं नभ की चोटी चढ़ता हूँ

कुचला जाकर भी धूली-सा आंधी सा और उमड़ता हूँ


मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-धार बने

इस निर्मम रण में पग-पग का रुकना ही मेरा वार बने !

भव सारा तुझपर है स्वाहा सब कुछ तप कर अंगार बने-

तेरी पुकार सा दुर्निवार मेरा यह नीरव प्यार बने




Friday, August 7, 2020

||Krishna Ki Chetavani || Hindi Poetry || PoemNagari || Ramdhari Singh' Dinkar'


यह कविता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित है,जब भगवान श्री कृष्ण कौरव के पास जाते है,एक शांति दूत बनकर ,उसके बाद क्या घटना घटती उसे बड़े से सुंदर ढंग से यहां व्याख्या की गए है -

कृष्ण की चेतावनी

 रामधारी सिंह "दिनकर" »

वर्षों तक वन में घूम-घूम,


बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,


                        सह धूप-घाम, पानी-पत्थर

पांडव आये कुछ और निखर।


सौभाग्य न सब दिन सोता है,देखें,


आगे क्या होता है।


मैत्री की राह बताने को,


सबको सुमार्ग पर लाने को,


दुर्योधन को समझाने को,


भीषण विध्वंस बचाने को,


भगवान् हस्तिनापुर आये,


पांडव का संदेशा लाये।

‘दो न्याय अगर तो आधा दो,


                     पर, इसमें भी यदि बाधा हो,

तो दे दो केवल पाँच ग्राम,


रक्खो अपनी धरती तमाम।


हम वहीं खुशी से खायेंगे,


परिजन पर असि न उठायेंगे!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,


आशीष समाज की ले न सका,


उलटे, हरि को बाँधने चला,


जो था असाध्य, साधने चला।


जब नाश मनुज पर छाता है,


पहले विवेक मर जाता है।

हरि ने भीषण हुंकार किया,


अपना स्वरूप-विस्तार किया,


अपना रूप विस्तार किया ,


डग मग डग मग दिग्गज डोले

‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,


हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है,


यह देख, पवन मुझमें लय है,


मुझमें विलीन झंकार सकल,


मुझमें लय है संसार सकल।


अमरत्व फूलता है मुझमें,


संहार झूलता है मुझमें।

‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,


भूमंडल वक्षस्थल विशाल,


भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,


मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।


दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,


सब हैं मेरे मुख के अन्दर।

‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,


मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,


चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,


नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।


शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,


शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।

‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,


शत कोटि जिष्णु, जलपति, धनेश,


शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,


शत कोटि दण्डधर लोकपाल।


जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,


हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।

‘भूलोक, अतल, पाताल देख,


गत और अनागत काल देख,


यह देख जगत का आदि-सृजन,


यह देख, महाभारत का रण,


मृतकों से पटी हुई भू है,


पहचान, इसमें कहाँ तू है।

‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,


पद के नीचे पाताल देख,


मुट्ठी में तीनों काल देख,


मेरा स्वरूप विकराल देख।


सब जन्म मुझी से पाते हैं,


फिर लौट मुझी में आते हैं।

‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,


साँसों में पाता जन्म पवन,


पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,


हँसने लगती है सृष्टि उधर!


मैं जब भी मूँदता हूँ लोचन,


छा जाता चारों ओर मरण।

‘बाँधने मुझे तो आया है,


जंजीर बड़ी क्या लाया है?


यदि मुझे बाँधना चाहे मन,


पहले तो बाँध अनन्त गगन।


सूने को साध न सकता है,


वह मुझे बाँध कब सकता है?

‘हित-वचन नहीं तूने माना,


मैत्री का मूल्य न पहचाना,


तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,


अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।


याचना नहीं, अब रण होगा,


जीवन-जय या कि मरण होगा।

‘टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,


बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,


फण शेषनाग का डोलेगा,


विकराल काल मुँह खोलेगा।


दुर्योधन! रण ऐसा होगा।


फिर कभी नहीं जैसा होगा।

‘भाई पर भाई टूटेंगे,


विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,


वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,


सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।


आखिर तू भूशायी होगा,


हिंसा का पर, दायी होगा।’

थी सभा सन्न, सब लोग डरे,


चुप थे या थे बेहोश पड़े।


केवल दो नर ना अघाते थे,


धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे।


कर जोड़ खड़े प्रमुदित,


                 निर्भय, दोनों पुकारते थे 'जय-जय'!

# Zinda Hai To Zindagi Ke Jeet Me Yakin Kar # PoemNagari # Hindi Poetry

 यह कविता निराशा में डूबे लोगो में एक उम्मीद की नई शक्ति की संचार करती है , हताशा इंसान को अंदर ही अंदर खोखला बना देता है ,हमे चाहिए कि जीवन की हर स्थिती में खुद को मजबूती के साथ आजमाते रहे ,वास्तव में जीवन साहस और उम्मीद का ही दूसरा नाम है , जीवन के राह में  हरेक कठिनाइयों को हंसते - हंसते झेला जा सकता है , अगर हिम्मत और सहसरूपी अनूठा गुण पास हो  ,यह कविता शैलेंद्र द्वारा लिखी है और जब भी में उदास होता हूं तो यह मुझे उम्मीद देती है ,आशा है आप सबको भी इससे हिम्मत मिलेगी इस कोरोना संकट के दौर में  हम सबको इस रचना को सुननी चाहिए , PoemNagari की तरफ़ से आप सभी के खुशहाली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.....

ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर

 शैलेन्द्र


तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,


अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!

सुबह और शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,


तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,


तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!


अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

 

https://youtu.be/HP_Sis4Nrto


ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,


ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,


कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!


अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,


यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,


जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर


अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर


मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर


नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर


अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,


टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,


मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,


अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,


न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,


गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!


अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है

 

शैलेंद्र (30 अगस्त 1923 - 14 दिसंबर 1966) एक लोकप्रिय भारतीय हिंदी-उर्दू गीतकार थे। फिल्म निर्माता राज कपूर, गायक मुकेश, और संगीतकार शंकर-जयकिशन के साथ अपने जुड़ाव के लिए, उन्होंने कई सफल हिंदी फ़िल्मी गीतों के लिए गीत लिखे।  1950 और 1960 का दशक।

 शैलेन्द्र के पुत्र शैले शैलेन्द्र भी गीतकार बने।  17 साल की उम्र में, राज कपूर ने उन्हें अपने पिता के गीत जीना यहा, फिल्म मेरा नाम जोकर के लिए  'जीना यहां मारना यहां' गीत को  पूरा करने के लिए कहा।  Shaily Shailendra ने गीत का "mukhra" पूरा किया जबकि शैलेंद्र ने "antara" को उनके निधन से पहले ही पूरा कर लिया।  गीतकार, लेखक और निर्देशक गुलज़ार ने कई मौकों पर कहा है कि शैलेंद्र हिंदी फ़िल्म उद्योग द्वारा निर्मित सर्वश्रेष्ठ गीतकार थे।


 शैलेंद्र के गीत मेरा जूता है जापानी को 2016 की अंग्रेजी भाषा की फिल्म ' Deadpool  'में दिखाया गया था।

 शैलेंद्र के लिखे कुछ लोकप्रिय गीतों में शामिल हैं:


 "सुहाना सफर और ये" - "मधुमती"


 "चलत मुसाफिर मोह लिया रे" - "तिसरी कसम"


 "ये मेरा दीवानापन है" - "यहुदी"


 "दिल का हाल सुने दिलवाला" - "श्री 420"


 "तू प्यार का सागर है" - "सीमा"


 "ये रात भीगी भीगी" - "चोरी चोरी"


 "पान खाए सईया हमारो" - "तीसरी कसम"


 "ओ सजना, बरखा बहार आई" - "परख (1960 फिल्म)"


 "आजा ऐ बहार" - "राजकुमार"


 "रुक जा रात, थार जा रे चंदा" - "दिल एक मंदिर"


 "याद ना जाए बीते दिनों  की" - "दिल एक मंदिर"


 "चढ गयो पापी बिछुआ" - "मधुमती"


 "आवारा हूं" - आवारा


 "रमैया वस्तावैया" - श्री 420


 "मुड मुड के ना देख" - श्री ४२०


 "मेरा जूट है जापानी" - श्री 420


 "आज फिर जीने की" - गाइड


 "गाता रहे मेरा दिल" - गाइड


 "पिया तोसे नैना लागे रे" - गाइड


 "क्या से क्या हो गया" - गाइड


 "दिन ढल जाए है" - गाइड


 "हर दिल जो प्यार करेगा" - संगम


 "दोस्त दो ना राह" - संगम


 "सब कुछ सीखा" - अनारी


 "किसी की मुस्कराहटो पे" - अनारी


 "दिल की नज़र से" - अनाड़ी


 "खोया खोया चाँद" - काला बाजार


 "प्यार हुआ इकरार हुआ" - श्री 420


 "अजीब दास्तान है ये" - दिल अपना और प्रीत पराई


 "झूमती चली हवा" - संगीत सम्राट तानसेन


 "जीना यार मारना येहन" - मेरा नाम जोकर


 "नाचे मन मोरा मगन" - "मेरी सूरत तेरी अँखें"


 "सजन रे झूले मत बोलो" - "तीसरी कसम"


 "रात के हमसफ़र, थके के  घर को चले" - "पेरिस में एक शाम"


 "तू ज़िन्दा है ज़िन्दगी के लिए जीत याकेन कर"


अद्भुत है इनकी रचनाएं !

Visit here - 

 https://youtu.be/HP_Sis4Nrto





Tuesday, August 4, 2020

#Poem Nagari #Neel Kusum #Hindi Poetry #Written by Ramdhari Singh'Dinkar'

नील कुसुम (कविता)


                                        -रामधारी सिंह "दिनकर"


‘‘है यहाँ तिमिर, आगे भी ऐसा ही तम है,


तुम नील कुसुम के लिए कहाँ तक जाओगे ?


जो गया, आज तक नहीं कभी वह लौट सका,


नादान मर्द ! क्यों अपनी जान गँवाओगे ?

प्रेमिका ! अरे, उन शोख़ बुतों का क्या कहना !



वे तो यों ही उन्माद जगाया करती हैं;


पुतली से लेतीं बाँध प्राण की डोर प्रथम,


पीछे चुम्बन पर क़ैद लगया करती हैं।

इनमें से किसने कहा, चाँद से कम लूँगी ?


पर, चाँद तोड़ कर कौन मही पर लाया है ?


किसके मन की कल्पना गोद में बैठ सकी ?


किसकी जहाज़ फिर देश लौट कर आया है ?’’

ओ नीतिकार ! तुम झूठ नहीं कहते होगे,


बेकार मगर, पगलों को ज्ञान सिखाना है;


मरने का होगा ख़ौफ़, मौत की छाती में


जिसको अपनी ज़िन्दगी ढूँढ़ने जाना है ?

औ’ सुना कहाँ तुमने कि ज़िन्दगी कहते हैं,


सपनों ने देखा जिसे, उसे पा जाने को ?


इच्छाओं की मूर्तियाँ घूमतीं जो मन में,


उनको उतार मिट्टी पर गले लगाने को ?

ज़िन्दगी, आह ! वह एक झलक रंगीनी की,


नंगी उँगली जिसको न कभी छू पाती है,


हम जभी हाँफते हुए चोटियों पर चढ़ते,


वह खोल पंख चोटियाँ छोड़ उड़ जाती है।

रंगीनी की वह एक झलक, जिसके पीछे


है मच हुई आपा-आपी मस्तानों में,


वह एक दीप जिसके पीछे है डूब रहीं


दीवानों की किश्तियाँ कठिन तूफ़ानों में।

डूबती हुई किश्तियाँ ! और यह किलकारी !


ओ नीतिकार ! क्या मौत इसी को कहते हैं ?


है यही ख़ौफ़, जिससे डरकर जीनेवाले


पानी से अपना पाँव समेटे रहते हैं ?

ज़िन्दगी गोद में उठा-उठा हलराती है


आशाओ की भीषिका झेलनेवालों को;


औ; बड़े शौक़ से मौत पिलाती है जीवन


अपनी छाती से लिपट खेलनेवालों को।

तुम लाशें गिनते रहे खोजनेवालों की,


लेकिन, उनकी असलियत नहीं पहचान सके;


मुरदों में केवल यही ज़िन्दगीवाले थे


जो फूल उतारे बिना लौट कर आ न सके।

हो जहाँ कहीं भी नील कुसुम की फुलवारी,


मैं एक फूल तो किसी तरह ले जाऊँगा,


जूडे में जब तक भेंट नहीं यह बाँध सकूँ,


किस तरह प्राण की मणि को हृदय लगाऊँगा ?

जो जीवन ना बन सका ! || That Could Not Be Life ! || PoemNagari || Hindi Kavita

कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द  जो जीवन ना बन सके बस छाया या  उस जैसा कुछ बनके  ख...