Tuesday, September 22, 2020

|Ham Panchhi Unmukta Gagan Ke | HindiPoetry |PoemNagari |Shivmangal Singh 'Suman'

#हमपंछीउन्‍मुक्‍तगगनके 
यह कविता शिवमंगल सिंह 'सुमन' जी द्वारा लिखा गया है शिवमंगल सिंह 'सुमन' (1915-2002) एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और शिक्षाविद थे। उनकी मृत्यु के बाद, भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री ने कहा, "डॉ. शिव मंगल सिंह 'सुमन' केवल हिंदी कविता के क्षेत्र में एक शक्तिशाली चिह्न ही नहीं थे, बल्कि वह अपने समय की सामूहिक चेतना के संरक्षक भी थे। उन्होंने न केवल अपनी भावनाओं का दर्द व्यक्त किया, बल्कि युग के मुद्दों पर भी निर्भीक रचनात्मक टिप्पणी भी की थी।

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के 

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के


पिंजरबद्ध न गा पाएँगे,


कनक-तीलियों से टकराकर


पुलकित पंख टूट जाऍंगे।



हम बहता जल पीनेवाले


मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे,


कहीं भली है कटुक निबोरी


कनक-कटोरी की मैदा से,

स्‍वर्ण-श्रृंखला के बंधन में


अपनी गति, उड़ान सब भूले,


बस सपनों में देख रहे हैं


तरू की फुनगी पर के झूले।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते


नील गगन की सीमा पाने,


लाल किरण-सी चोंचखोल


चुगते तारक-अनार के दाने।

होती सीमाहीन क्षितिज से


इन पंखों की होड़ा-होड़ी,


या तो क्षितिज मिलन बन जाता


या तनती साँसों की डोरी।

नीड़ न दो, चाहे टहनी का


आश्रय छिन्‍न-भिन्‍न कर डालो,


लेकिन पंख दिए हैं, तो


आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।

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