यह कविता भवानी प्रसाद मिश्र जी द्वारा लिखा गया है ।
कठपुतली
भवानीप्रसाद मिश्र
कठपुतली
गुस्से से उबली
बोली- यह धागे
क्यों हैं मेरे पीछे-आगे?
इन्हें तोड़ दो;
मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो।
सुनकर बोलीं और-और
कठपुतलियाँ
कि हाँ,
बहुत दिन हुए
हमें अपने मन के छंद छुए।
मगर...
पहली कठपुतली सोचने लगी-
यह कैसी इच्छा
मेरे मन में जगी?
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