प्रस्तुत कहानी फणीश्वर नाथ द्वारा लिखित है ,
फणीश्वर नाथ 'रेणु' एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। इनका जन्म : 4 मार्च 1921 को अररिया पूर्णिया ज़िला, बिहार में हुआ था और इनकी मृत्यु: 11 अप्रैल 1977 हुई थी ,प्रस्तुत कहानी तिसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम बहुत ही लोकप्रिय है अभी के समय में भी,इनके उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
#तिसरीकसम
तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम
फणीश्वरनाथ रेणु
मथुरामोहनकंपनी में लैला बननेवाली हीराबाई का नाम किसने नहीं सुना होगा भला! लेकिन हिरामन की बात निराली है! उसने सात साल तक लगातार मेलों की लदनी लादी है, कभी नौटंकी-थियेटर या बायस्कोप सिनेमा नहीं देखा। लैला या हीराबाई का नाम भी उसने नहीं सुना कभी। देखने की क्या बात! सो मेला टूटने के पंद्रह दिन पहले आधी रात की बेला में काली ओढ़नी में लिपटी औरत को देख कर उसके मन में खटका अवश्य लगा था। बक्सा ढोनेवाले नौकर से गाड़ी-भाड़ा में मोल-मोलाई करने की कोशिश की तो ओढ़नीवाली ने सिर हिला कर मना कर दिया। हिरामन ने गाड़ी जोतते हुए नौकर से पूछा, 'क्यों भैया, कोई चोरी चमारी का माल-वाल तो नहीं?' हिरामन को फिर अचरज हुआ। बक्सा ढोनेवाले आदमी ने हाथ के इशारे से गाड़ी हाँकने को कहा और अँधेरे में गायब हो गया। हिरामन को मेले में तंबाकू बेचनेवाली बूढ़ी की काली साड़ी की याद आई थी।
ऐसे में कोई क्या गाड़ी हाँके!
एक तो पीठ में गुदगुदी लग रही है। दूसरे रह-रह कर चंपा का फूल खिल जाता है उसकी गाड़ी में। बैलों को डाँटो तो 'इस-बिस' करने लगती है उसकी सवारी। उसकी सवारी! औरत अकेली, तंबाकू बेचनेवाली बूढ़ी नहीं! आवाज सुनने के बाद वह बार-बार मुड़ कर टप्पर में एक नजर डाल देता है, अँगोछे से पीठ झाड़ता है। ...भगवान जाने क्या लिखा है इस बार उसकी किस्मत में! गाड़ी जब पूरब की ओर मुड़ी, एक टुकड़ा चाँदनी उसकी गाड़ी में समा गई। सवारी की नाक पर एक जुगनू जगमगा उठा। हिरामन को सबकुछ रहस्यमय - अजगुत-अजगुत - लग रहा है। सामने चंपानगर से सिंधिया गाँव तक फैला हुआ मैदान... कहीं डाकिन-पिशाचिन तो नहीं?
हिरामन की सवारी ने करवट ली। चाँदनी पूरे मुखड़े पर पड़ी तो हिरामन चीखते-चीखते रूक गया - अरे बाप! ई तो परी है!
परी की आँखें खुल गईं। हिरामन ने सामने सड़क की ओर मुँह कर लिया और बैलों को टिटकारी दी। वह जीभ को तालू से सटा कर टि-टि-टि-टि आवाज निकालता है। हिरामन की जीभ न जाने कब से सूख कर लकड़ी-जैसी हो गई थी!
'भैया, तुम्हारा नाम क्या है?'
हू-ब-हू फेनूगिलास! ...हिरामन के रोम-रोम बज उठे। मुँह से बोली नहीं निकली। उसके दोनों बैल भी कान खड़े करके इस बोली को परखते हैं।
'मेरा नाम! ...नाम मेरा है हिरामन!'
उसकी सवारी मुस्कराती है। ...मुस्कराहट में खुशबू है।
'तब तो मीता कहूँगी, भैया नहीं। - मेरा नाम भी हीरा है।'
'इस्स!' हिरामन को परतीत नहीं, 'मर्द और औरत के नाम में फर्क होता है।'
'हाँ जी, मेरा नाम भी हीराबाई है।'
कहाँ हिरामन और कहाँ हीराबाई, बहुत फर्क है!
हिरामन ने अपने बैलों को झिड़की दी - 'कान चुनिया कर गप सुनने से ही तीस कोस मंजिल कटेगी क्या? इस बाएँ नाटे के पेट में शैतानी भरी है।' हिरामन ने बाएँ बैल को दुआली की हल्की झड़प दी।
'मारो मत, धीरे धीरे चलने दो। जल्दी क्या है!'
हिरामन के सामने सवाल उपस्थित हुआ, वह क्या कह कर 'गप' करे हीराबाई से? 'तोहे' कहे या 'अहाँ'? उसकी भाषा में बड़ों को 'अहाँ' अर्थात 'आप' कह कर संबोधित किया जाता है, कचराही बोली में दो-चार सवाल-जवाब चल सकता है, दिल-खोल गप तो गाँव की बोली में ही की जा सकती है किसी से।
आसिन-कातिक के भोर में छा जानेवाले कुहासे से हिरामन को पुरानी चिढ़ है। बहुत बार वह सड़क भूल कर भटक चुका है। किंतु आज के भोर के इस घने कुहासे में भी वह मगन है। नदी के किनारे धन-खेतों से फूले हुए धान के पौधों की पवनिया गंध आती है। पर्व-पावन के दिन गाँव में ऐसी ही सुगंध फैली रहती है। उसकी गाड़ी में फिर चंपा का फूल खिला। उस फूल में एक परी बैठी है। ...जै भगवती।
हिरामन ने आँख की कनखियों से देखा, उसकी सवारी ...मीता ...हीराबाई की आँखें गुजुर-गुजुर उसको हेर रही हैं। हिरामन के मन में कोई अजानी रागिनी बज उठी। सारी देह सिरसिरा रही है। बोला, 'बैल को मारते हैं तो आपको बहुत बुरा लगता है?'
हीराबाई ने परख लिया, हिरामन सचमुच हीरा है।
चालीस साल का हट्टा-कट्टा, काला-कलूटा, देहाती नौजवान अपनी गाड़ी और अपने बैलों के सिवाय दुनिया की किसी और बात में विशेष दिलचस्पी नहीं लेता। घर में बड़ा भाई है, खेती करता है। बाल-बच्चेवाला आदमी है। हिरामन भाई से बढ़ कर भाभी की इज्जत करता है। भाभी से डरता भी है। हिरामन की भी शादी हुई थी, बचपन में ही गौने के पहले ही दुलहिन मर गई। हिरामन को अपनी दुलहिन का चेहरा याद नहीं। ...दूसरी शादी? दूसरी शादी न करने के अनेक कारण हैं। भाभी की जिद, कुआंरी लड़की से ही हिरामन की शादी करवाएगी। कुआंरी का मतलब हुआ पाँच-सात साल की लड़की। कौन मानता है सरधा-कानून? कोई लड़कीवाला दोब्याहू को अपनी लड़की गरज में पड़ने पर ही दे सकता है। भाभी उसकी तो जीद्द करके बैठी है, सो बैठी है। भाभी के आगे भैया की भी नहीं चलती! ...अब हिरामन ने तय कर लिया है, शादी नहीं करेगा। कौन बलाय मोल लेने जाए! ...ब्याह करके फिर गाड़ीवानी क्या करेगा कोई! और सब कुछ छूट जाए, गाड़ीवानी नहीं छोड़ सकता हिरामन।
हीराबाई ने हिरामन के जैसा निश्छल आदमी बहुत कम देखा है। पूछा, 'आपका घर कौन जिल्ला में पड़ता है?' कानपुर नाम सुनते ही जो उसकी हँसी छूटी, तो बैल भड़क उठे। हिरामन हँसते समय सिर नीचा कर लेता है। हँसी बंद होने पर उसने कहा, 'वाह रे कानपुर! तब तो नाकपुर भी होगा? 'और जब हीराबाई ने कहा कि नाकपुर भी है, तो वह हँसते-हँसते दुहरा हो गया।
'वाह रे दुनिया! क्या-क्या नाम होता है! कानपुर, नाकपुर!' हिरामन ने हीराबाई के कान के फूल को गौर से देखा। नाक की नकछवि के नग देख कर सिहर उठा - लहू की बूँद!
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