Part-08
प्रस्तुत कहानी फणीश्वर नाथ द्वारा लिखित है ,
फणीश्वर नाथ 'रेणु' एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे। इनका जन्म : 4 मार्च 1921 को अररिया पूर्णिया ज़िला, बिहार में हुआ था और इनकी मृत्यु: 11 अप्रैल 1977 हुई थी ,प्रस्तुत कहानी तिसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम बहुत ही लोकप्रिय है अभी के समय में भी,इनके उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
#तिसरीकसम
तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम
फणीश्वरनाथ रेणु
#HindiStory
हीराबाई थैली बढ़ाती हुई बोली, 'लो! हे भगवान! भेंट हो गई, चलो, मैं तो उम्मीद खो चुकी थी। तुमसे अब भेंट नहीं हो सकेगी। मैं जा रही हूँ गुरू जी!'
बक्सा ढोनेवाला आदमी आज कोट-पतलून पहन कर बाबूसाहब बन गया है। मालिकों की तरह कुलियों को हुकम दे रहा है - 'जनाना दर्जा में चढ़ाना। अच्छा?'
हिरामन हाथ में थैली ले कर चुपचाप खड़ा रहा। कुरते के अंदर से थैली निकाल कर दी है हीराबाई ने। चिड़िया की देह की तरह गर्म है थैली।
'गाड़ी आ रही है।' बक्सा ढोनेवाले ने मुँह बनाते हुए हीराबाई की ओर देखा। उसके चेहरे का भाव स्पष्ट है - इतना ज्यादा क्या है?
हीराबाई चंचल हो गई। बोली, 'हिरामन, इधर आओ, अंदर। मैं फिर लौट कर जा रही हूँ मथुरामोहन कंपनी में। अपने देश की कंपनी है। ...वनैली मेला आओगे न?'
हीराबाई ने हिरामन के कंधे पर हाथ रखा, ...इस बार दाहिने कंधे पर। फिर अपनी थैली से रूपया निकालते हुए बोली, 'एक गरम चादर खरीद लेना...।'
हिरामन की बोली फूटी, इतनी देर के बाद - 'इस्स! हरदम रूपैया-पैसा! रखिए रूपैया! क्या करेंगे चादर?'
हीराबाई का हाथ रूक गया। उसने हिरामन के चेहरे को गौर से देखा। फिर बोली, 'तुम्हारा जी बहुत छोटा हो गया है। क्यों मीता? महुआ घटवारिन को सौदागर ने खरीद जो लिया है गुरू जी!'
गला भर आया हीराबाई का। बक्सा ढोनेवाले ने बाहर से आवाज दी - 'गाड़ी आ गई।' हिरामन कमरे से बाहर निकल आया। बक्सा ढोनेवाले ने नौटंकी के जोकर जैसा मुँह बना कर कहा, 'लाटफारम से बाहर भागो। बिना टिकट के पकड़ेगा तो तीन महीने की हवा...।'
हिरामन चुपचाप फाटक से बाहर जा कर खड़ा हो गया। ...टीसन की बात, रेलवे का राज! नहीं तो इस बक्सा ढोनेवाले का मुँह सीधा कर देता हिरामन।
हीराबाई ठीक सामनेवाली कोठरी में चढ़ी। इस्स! इतना टान! गाड़ी में बैठ कर भी हिरामन की ओर देख रही है, टुकुर-टुकुर। लालमोहर को देख कर जी जल उठता है, हमेशा पीछे-पीछे, हरदम हिस्सादारी सूझती है।
गाड़ी ने सीटी दी। हिरामन को लगा, उसके अंदर से कोई आवाज निकल कर सीटी के साथ ऊपर की ओर चली गई - इ-स्स!
गाड़ी हिली। हिरामन ने अपने दाहिने पैर के अँगूठे को बाएँ पैर की एड़ी से कुचल लिया। कलेजे की धड़कन ठीक हो गई। हीराबाई हाथ की बैंगनी साफी से चेहरा पोंछती है। साफी हिला कर इशारा करती है ...अब जाओ। आखिरी डिब्बा गुजरा, प्लेटफार्म खाली सब खाली ...खोखले ...मालगाड़ी के डिब्बे! दुनिया ही खाली हो गई मानो! हिरामन अपनी गाड़ी के पास लौट आया।
हिरामन ने लालमोहर से पूछा, 'तुम कब तक लौट रहे हो गाँव?'
लालमोहर बोला, 'अभी गाँव जा कर क्या करेंगे? यहाँ तो भाड़ा कमाने का मौका है! हीराबाई चली गई, मेला अब टूटेगा।'
- 'अच्छी बात। कोई समाद देना है घर?'
लालमोहर ने हिरामन को समझाने की कोशिश की। लेकिन हिरामन ने अपनी गाड़ी गाँव की ओर जानेवाली सड़क की ओर मोड़ दी। अब मेले में क्या धरा है! खोखला मेला!
रेलवे लाइन की बगल से बैलगाड़ी की कच्ची सड़क गई है दूर तक। हिरामन कभी रेल पर नहीं चढ़ा है। उसके मन में फिर पुरानी लालसा झाँकी, रेलगाड़ी पर सवार हो कर, गीत गाते हुए जगरनाथ-धाम जाने की लालसा। उलट कर अपने खाली टप्पर की ओर देखने की हिम्मत नहीं होती है। पीठ में आज भी गुदगुदी लगती है। आज भी रह-रह कर चंपा का फूल खिल उठता है, उसकी गाड़ी में।( एक गीत की टूटी कड़ी पर नगाड़े का ताल कट जाता है, बार-बार!)
उसने उलट कर देखा, बोरे भी नहीं, बाँस भी नहीं, बाघ भी नहीं - परी ...देवी ...मीता ...हीरादेवी ...महुआ घटवारिन - को-ई नहीं। मरे हुए मुहर्तों की गूँगी आवाजें मुखर होना चाहती है। हिरामन के होंठ हिल रहे हैं। शायद वह तीसरी कसम खा रहा है - कंपनी की औरत की लदनी...।
हिरामन ने हठात अपने दोनों बैलों को झिड़की दी, दुआली से मारते हुए बोला, 'रेलवे लाइन की ओर उलट-उलट कर क्या देखते हो?' दोनों बैलों ने कदम खोल कर चाल पकड़ी। हिरामन गुनगुनाने लगा - 'अजी हाँ, मारे गए गुलफाम...!'
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