Thursday, September 24, 2020

|Teesari Kasam| HindiStory |PoemNagari | Phanishwar Nath 'Renu |Part -06

Part-06
प्रस्तुत कहानी फणीश्वर नाथ द्वारा लिखित है ,


फणीश्वर नाथ 'रेणु' एक हिन्दी भाषा के साहित्यकार थे।  इनका जन्म : 4 मार्च 1921 को अररिया पूर्णिया ज़िला, बिहार में हुआ था और इनकी मृत्यु: 11 अप्रैल 1977 हुई थी ,प्रस्तुत कहानी तिसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम बहुत ही लोकप्रिय है अभी के समय में भी,इनके  उपन्यास मैला आंचल को बहुत ख्याति मिली थी जिसके लिए उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 

#तिसरीकसम 

तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम 


फणीश्वरनाथ रेणु

#HindiStory

हिरामन चलते-चलते रूक गया - 'क्या करें लालमोहर भाई, जरा कहो तो! बड़ी जिद्द करती है, कहती है, नौटंकी देखना ही होगा।'
'फोकट में ही?'
'और गाँव नहीं पहुँचेगी यह बात?'
हिरामन बोला, 'नहीं जी! एक रात नौटंकी देख कर जिंदगी-भर बोली-ठोली कौन सुने? ...देसी मुर्गी विलायती चाल!'
धुन्नीराम ने पूछा, 'फोकट में देखने पर भी तुम्हारी भौजाई बात सुनाएगी?'
लालमोहर के बासा के बगल में, एक लकड़ी की दुकान लाद कर आए हुए गाड़ीवानों का बासा है। बासा के मीर-गाड़ीवान मियाँजान बूढ़े ने सफरी गुड़गुड़ी पीते हुए पूछा, 'क्यों भाई, मीनाबाजार की लदनी लाद कर कौन आया है?'
मीनाबाजार! मीनाबाजार तो पतुरिया-पट्टी को कहते हैं। ...क्या बोलता है यह बूढ़ा मियाँ? लालमोहर ने हिरामन के कान में फुसफुसा कर कहा, 'तुम्हारी देह मह-मह-महकती है। सच!'
लहसनवाँ लालमोहर का नौकर-गाड़ीवान है। उम्र में सबसे छोटा है। पहली बार आया है तो क्या? बाबू-बबुआइनों के यहाँ बचपन से नौकरी कर चुका है। वह रह-रह कर वातावरण में कुछ सूँघता है, नाक सिकोड़ कर। हिरामन ने देखा, लहसनवाँ का चेहरा तमतम गया है। कौन आ रहा है धड़धड़ाता हुआ? - 'कौन, पलटदास? क्या है?'
पलटदास आ कर खड़ा हो गया चुपचाप। उसका मुँह भी तमतमाया हुआ था। हिरामन ने पूछा, 'क्या हुआ? बोलते क्यों नहीं?'

क्या जवाब दे पलटदास! हिरामन ने उसको चेतावनी दे दी थी, गपशप होशियारी से करना। वह चुपचाप गाड़ी की आसनी पर जा कर बैठ गया, हिरामन की जगह पर। हीराबाई ने पूछा, 'तुम भी हिरामन के साथ हो?' पलटदास ने गरदन हिला कर हामी भरी। हीराबाई फिर लेट गई। ...चेहरा-मोहरा और बोली-बानी देख-सुन कर, पलटदास का कलेजा काँपने लगा, न जाने क्यों। हाँ! रामलीला में सिया सुकुमारी इसी तरह थकी लेटी हुई थी। जै! सियावर रामचंद्र की जै! ...पलटदास के मन में जै-जैकार होने लगा। वह दास-वैस्नव है, कीर्तनिया है। थकी हुई सीता महारानी के चरण टीपने की इच्छा प्रकट की उसने, हाथ की उँगलियों के इशारे से, मानो हारमोनियम की पटरियों पर नचा रहा हो। हीराबाई तमक कर बैठ गई - 'अरे, पागल है क्या? जाओ, भागो!...'
पलटदास को लगा, गुस्साई हुई कंपनी की औरत की आँखों से चिनगारी निकल रही है - छटक्-छटक्! वह भागा।
पलटदास क्या जवाब दे! वह मेला से भी भागने का उपाय सोच रहा है। बोला, 'कुछ नहीं। हमको व्यापारी मिल गया। अभी ही टीसन जा कर माल लादना है। भात में तो अभी देर हैं। मैं लौट आता हूँ तब तक।'
खाते समय धुन्नीराम और लहसनवाँ ने पलटदास की टोकरी-भर निंदा की। छोटा आदमी है। कमीना है। पैसे-पैसे का हिसाब जोड़ता है। खाने-पीने के बाद लालमोहर के दल ने अपना बासा तोड़ दिया। धुन्नी और लहसनवाँ गाड़ी जोत कर हिरामन के बासा पर चले, गाड़ी की लीक धर कर। हिरामन ने चलते-चलते रूक कर, लालमोहर से कहा, 'जरा मेरे इस कंधे को सूँघो तो। सूँघ कर देखो न?'
लालमोहर ने कंधा सूँघ कर आँखे मूँद लीं। मुँह से अस्फुट शब्द निकला - ए - ह!'
हिरामन ने कहा, 'जरा-सा हाथ रखने पर इतनी खुशबू! ...समझे!' लालमोहर ने हिरामन का हाथ पकड़ लिया - 'कंधे पर हाथ रखा था, सच? ...सुनो हिरामन, नौटंकी देखने का ऐसा मौका फिर कभी हाथ नहीं लगेगा। हाँ!'
'तुम भी देखोगे?' लालमोहर की बत्तीसी चौराहे की रोशनी में झिलमिला उठी।
बासा पर पहुँच कर हिरामन ने देखा, टप्पर के पास खड़ा बतिया रहा है कोई, हीराबाई से। धुन्नी और लहसनवाँ ने एक ही साथ कहा, 'कहाँ रह गए पीछे? बहुत देर से खोज रही है कंपनी...!'
हिरामन ने टप्पर के पास जा कर देखा - अरे, यह तो वही बक्सा ढोनेवाला नौकर, जो चंपानगर मेले में हीराबाई को गाड़ी पर बिठा कर अँधेरे में गायब हो गया था।
'आ गए हिरामन! अच्छी बात, इधर आओ। ...यह लो अपना भाड़ा और यह लो अपनी दच्छिना! पच्चीस-पच्चीस, पचास।'
हिरामन को लगा, किसी ने आसमान से धकेल कर धरती पर गिरा दिया। किसी ने क्यों, इस बक्सा ढोनेवाले आदमी ने। कहाँ से आ गया? उसकी जीभ पर आई हुई बात जीभ पर ही रह गई ...इस्स! दच्छिना! वह चुपचाप खड़ा रहा।
हीराबाई बोली, 'लो पकड़ो! और सुनो, कल सुबह रौता कंपनी में आ कर मुझसे भेंट करना। पास बनवा दूँगी। ...बोलते क्यों नहीं?'
लालमोहर ने कहा, 'इनाम-बकसीस दे रही है मालकिन, ले लो हिरामन! हिरामन ने कट कर लालमोहर की ओर देखा। ...बोलने का जरा भी ढंग नहीं इस लालमोहरा को।'
 - गाड़ी-बैल छोड़ कर नौटंकी कैसे देख सकता है कोई गाड़ीवान, मेले में?
हिरामन ने रूपया लेते हुए कहा, 'क्या बोलेंगे!' उसने हँसने की चेष्टा की। कंपनी की औरत कंपनी में जा रही है। हिरामन का क्या! बक्सा ढोनेवाला रास्ता दिखाता हुआ आगे बढ़ा - 'इधर से।' हीराबाई जाते-जाते रूक गई। हिरामन के बैलों को संबोधित करके बोली, 'अच्छा, मैं चली भैयन।'
बैलों ने, भैया शब्द पर कान हिलाए।
'? ? ..!'
'भा-इ-यो, आज रात!  संगीत कंपनी के स्टेज पर! गुलबदन देखिए, गुलबदन! आपको यह जान कर खुशी होगी कि मथुरामोहन कंपनी की मशहूर एक्ट्रेस मिस हीरादेवी, जिसकी एक-एक अदा पर हजार जान फिदा हैं, इस बार हमारी कंपनी में आ गई हैं। याद रखिए। आज की रात। मिस हीरादेवी गुलबदन...!'
नौटंकीवालों के इस एलान से मेले की हर पट्टी में सरगर्मी फैल रही है। ...हीराबाई? मिस हीरादेवी? लैला, गुलबदन...? फिलिम एक्ट्रेस को मात करती है।
तेरी बाँकी अदा पर मैं खुद हूँ फिदा,
तेरी चाहत को दिलबर बयाँ क्या करूँ!
यही ख्वाहिश है कि इ-इ-इ तू मुझको देखा करे
और दिलोजान मैं तुमको देखा करूँ।
हर आदमी का दिल नगाड़ा हो गया है।
लालमोहर दौड़ता-हाँफता बासा पर आया - 'ऐ, ऐ हिरामन, यहाँ क्या बैठे हो, चल कर देखो जै-जैकार हो रहा है!
हिरामन हड़बड़ा कर उठा। लहसनवाँ ने कहा, 'धुन्नी काका, तुम बासा पर रहो, मैं भी देख आऊँ।'
धुन्नी की बात कौन सुनता है। तीनों जन नौटंकी कंपनी की एलानिया पार्टी के पीछे-पीछे चलने लगे। हर नुक्कड़ पर रूक कर, बाजा बंद कर के एलान किया जाना है। एलान के हर शब्द पर हिरामन पुलक उठता है। हीराबाई का नाम, नाम के साथ अदा-फिदा वगैरह सुन कर उसने लालमोहर की पीठ थपथपा दी - 'धन्न है, धन्न है! है या नहीं?'
लालमोहर ने कहा, 'अब बोलो! अब भी नौटंकी नहीं देखोगे?' सुबह से ही धुन्नीराम और लालमोहर समझा रहे थे, समझा कर हार चुके थे - 'कंपनी में जा कर भेंट कर आओ। जाते-जाते कह कर गई है।' लेकिन हिरामन की बस एक बात - 'धत्त, कौन भेंट करने जाए! कंपनी की औरत, कंपनी में गई। अब उससे क्या लेना-देना! चीन्हेगी भी नहीं!'
वह मन-ही-मन रूठा हुआ था। एलान सुनने के बाद उसने लालमोहर से कहा, 'जरूर देखना चाहिए, क्यों लालमोहर?'
दोनों आपस में सलाह करके रौता कंपनी की ओर चले। खेमे के पास पहुँच कर हिरामन ने लालमोहर को इशारा किया, पूछताछ करने का भार लालमोहर के सिर। लालमोहर कचराही बोलना जानता है। लालमोहर ने एक काले कोटवाले से कहा, 'बाबू साहेब, जरा सुनिए तो!'
काले कोटवाले ने नाक-भौं चढ़ा कर कहा - 'क्या है? इधर क्यों?'
लालमोहर की कचराही बोली गड़बड़ा गई - तेवर देख कर बोला, 'गुलगुल ..नहीं-नहीं ...बुल-बुल ...नहीं ...।'
हिरामन ने झट-से सम्हाल दिया - 'हीरादेवी किधर रहती है, बता सकते हैं?' उस आदमी की आँखें हठात लाल हो गई। सामने खड़े नेपाली सिपाही को पुकार कर कहा, 'इन लोगों को क्यों आने दिया इधर?'
'हिरामन!' ...वही फेनूगिलासी आवाज किधर से आई? खेमे के परदे को हटा कर हीराबाई ने बुलाया - यहाँ आ जाओ, अंदर! ...देखो, बहादुर! इसको पहचान लो। यह मेरा हिरामन है। समझे?'
नेपाली दरबान हिरामन की ओर देख कर जरा मुस्कराया और चला गया। काले कोटवाले से जा कर कहा, 'हीराबाई का आदमी है। नहीं रोकने बोला!'
लालमोहर पान ले आया नेपाली दरबान के लिए - 'खाया जाए!'
'इस्स! एक नहीं, पाँच पास। पांचों अठनिया! बोली कि जब तक मेले में हो, रोज रात में आ कर देखना। सबका खयाल रखती है। बोली कि तुम्हारे और साथी है, सभी के लिए पास ले जाओ। कंपनी की औरतों की बात निराली होती है! है या नहीं?'
लालमोहर ने लाल कागज के टुकड़ों को छू कर देखा - 'पा-स! वाह रे हिरामन भाई! ...लेकिन पाँच पास ले कर क्या होगा? पलटदास तो फिर पलट कर आया ही नहीं है अभी तक।'
हिरामन ने कहा, 'जाने दो अभागे को। तकदीर में लिखा नहीं। ...हाँ, पहले गुरूकसम खानी होगी सभी को, कि गाँव-घर में यह बात एक पंछी भी न जान पाए।'
लालमोहर ने उत्तेजित हो कर कहा, 'कौन साला बोलेगा, गाँव में जा कर? पलटा ने अगर बदनामी की तो दूसरी बार से फिर साथ नहीं लाऊँगा।'
हिरामन ने अपनी थैली आज हीराबाई के जिम्मे रख दी है। मेले का क्या ठिकाना! किस्म-किस्म के पाकिटकाट लोग हर साल आते हैं। अपने साथी-संगियों का भी क्या भरोसा! हीराबाई मान गई। हिरामन के कपड़े की काली थैली को उसने अपने चमड़े के बक्स में बंद कर दिया। बक्से के ऊपर भी कपड़े का खोल और अंदर भी झलमल रेशमी अस्तर! मन का मान-अभिमान दूर हो गया।
लालमोहर और धुन्नीराम ने मिल कर हिरामन की बुद्धि की तारीफ की, उसके भाग्य को सराहा बार-बार। उसके भाई और भाभी की निंदा की, दबी जबान से। हिरामन के जैसा हीरा भाई मिला है, इसीलिए! कोई दूसरा भाई होता तो...।'
लहसनवाँ का मुँह लटका हुआ है। एलान सुनते-सुनते न जाने कहाँ चला गया कि घड़ी-भर साँझ होने के बाद लौटा है। लालमोहर ने एक मालिकाना झिड़की दी है, गाली के साथ  !
धुन्नीराम ने चूल्हे पर खिचड़ी चढ़ाते हुए कहा, 'पहले यह फैसला कर लो कि गाड़ी के पास कौन रहेगा!'
'रहेगा कौन, यह लहसनवाँ कहाँ जाएगा?'
लहसनवाँ रो पड़ा - 'ऐ-ए-ए मालिक, हाथ जोड़ते हैं। एक्को झलक! बस, एक झलक!'
हिरामन ने उदारतापूर्वक कहा, 'अच्छा-अच्छा, एक झलक क्यों, एक घंटा देखना। मैं आ जाऊँगा।'
नौटंकी शुरू होने के दो घंटे पहले ही नगाड़ा बजना शुरू हो जाता है। और नगाड़ा शुरू होते ही लोग पतिंगों की तरह टूटने लगते हैं। टिकटघर के पास भीड़ देख कर हिरामन को बड़ी हँसी आई - 'लालमोहर, उधर देख, कैसी धक्कमधुक्की कर रहे हैं लोग!'
हिरामन भाय!'
'कौन, पलटदास! कहाँ की लदनी लाद आए?' लालमोहर ने पराए गाँव के आदमी की तरह पूछा।
पलटदास ने हाथ मलते हुए माफी माँगी - 'कसूरबार हू , जो सजा दो तुम लोग, सब मंजूर है। लेकिन सच्ची बात कहें कि सिया सुकुमारी...।'
हिरामन के मन का पुरइन नगाड़े के ताल पर विकसित हो चुका है। बोला, 'देखो पलटा, यह मत समझना कि गाँव-घर की जनाना है। देखो, तुम्हारे लिए भी पास दिया है, पास ले लो अपना, तमासा देखो।'
लालमोहर ने कहा, 'लेकिन एक सर्त पर पास मिलेगा। बीच-बीच में लहसनवाँ को भी...।'
पलटदास को कुछ बताने की जरूरत नहीं। वह लहसनवाँ से बातचीत कर आया है अभी।
लालमोहर ने दूसरी शर्त सामने रखी - 'गाँव में अगर यह बात मालूम हुई किसी तरह...!'
'राम-राम!' दाँत से जीभ को काटते हुए कहा पलटदास ने।
पलटदास ने बताया - 'अठनिया फाटक इधर है!' फाटक पर खड़े दरबान ने हाथ से पास ले कर उनके चेहरे को बारी-बारी से देखा, बोला, 'यह तो पास है। कहाँ से मिला?'
अब लालमोहर की कचराही बोली सुने कोई! उसके तेवर देख कर दरबान घबरा गया - 'मिलेगा कहाँ से? अपनी कंपनी से पूछ लीजिए जा कर। चार ही नहीं, देखिए एक और है।' जेब से पाँचवा पास निकाल कर दिखाया लालमोहर ने।
एक रूपयावाले फाटक पर नेपाली दरबान खड़ा था। हिरामन ने पुकार कर कहा, 'ए सिपाही दाजू, सुबह को ही पहचनवा दिया और अभी भूल गए?'
नेपाली दरबान बोला, 'हीराबाई का आदमी है सब। जाने दो। पास हैं तो फिर काहे को रोकता है?'
अठनिया दर्जा!
तीनों ने 'कपड़घर' को अंदर से पहली बार देखा। सामने कुरसी-बेंचवाले दर्जे हैं। परदे पर राम-बन-गमन की तसवीर है। पलटदास पहचान गया। उसने हाथ जोड़ कर नमस्कार किया, परदे पर अंकित रामसिया सुकुमारी और लखनलला को। 'जै हो, जै हो!' पलटदास की आँखें भर आई।
हिरामन ने कहा, 'लालमोहर, छापी सभी खड़े हैं या चल रहे हैं?'
लालमोहर अपने बगल में बैठे दर्शकों से जान-पहचान कर चुका है। उसने कहा, 'खेला अभी परदा के भीतर है। अभी जमिनका दे रहा है, लोग जमाने के लिए।'
पलटदास ढोलक बजाना जानता है, इसलिए नगाड़े के ताल पर गरदन हिलाता है और दियासलाई पर ताल काटता है। बीड़ी आदान-प्रदान करके हिरामन ने भी एकाध जान-पहचान कर ली।


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जो जीवन ना बन सका ! || That Could Not Be Life ! || PoemNagari || Hindi Kavita

कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द  जो जीवन ना बन सके बस छाया या  उस जैसा कुछ बनके  ख...