Tuesday, October 6, 2020

Ho Gae Hai Peer Parvat-Si Pighalni Chahiye | HindiPoetry |PoemNagari | Dushyant Kumar

प्रस्तुत कविता दुष्यंत कुमार द्वारा लिखित है।

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।


आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,

शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।


हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,

हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।


सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।


मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

दुष्यंत कुमार त्यागी (27 सितंबर 1931-30 दिसंबर 1975) एक हिन्दी कवि , कथाकार और ग़ज़लकार थे। कवि की पुस्तकों में जन्मतिथि 1 सितंबर 1933 लिखी है, किन्तु दुष्यन्त साहित्य के मर्मज्ञ विजय बहादुर सिंह के अनुसार कवि की वास्तविक जन्मतिथि 27 सितंबर 1931 है।
दुष्यंत कुमार

दुष्यंत कुमार का जन्‍म उत्तर प्रदेश में बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ था। जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था। हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था। उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे। इस समय सिर्फ़ 44 वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की।

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