Monday, October 5, 2020

Sakhi, Ve Mujhse Kah Kar Jate |HindiPoetry|PoemNagari| Maithali Sharan Gupt

प्रस्तुत कविता मैथिली शरण गुप्त द्वारा लिखित है।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से सम्बोधित किया जाता था ।
    उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' की पदवी भी दी थी।उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष 'कवि दिवस' के रूप में मनाया जाता है। सन १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया।
           इस कविता में मैथिलीशरण गुप्त जी ने सिद्धार्थ (गौतमबुद्ध ) की अर्द्धांगिनी ( यशोधरा ) की मनोदशा को व्यक्त किए हैं जब सिद्धार्थ बिना बताए घर-बार छोड़ कर ज्ञान की खोज में निकल जाते हैं ।

सखि वे मुझसे कह कर जाते 


सखि, वे मुझसे कहकर जाते,


कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?

मुझको बहुत उन्होंने माना


फिर भी क्या पूरा पहचाना?


मैंने मुख्य उसी को जाना


जो वे मन में लाते।


सखि, वे मुझसे कहकर जाते।


स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,


प्रियतम को, प्राणों के पण में,


हमीं भेज देती हैं रण में -


क्षात्र-धर्म के नाते


सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा,


किसपर विफल गर्व अब जागा?


जिसने अपनाया था, त्यागा;


रहे स्मरण ही आते!


सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते,


पर इनसे जो आँसू बहते,


सदय हृदय वे कैसे सहते ?


गये तरस ही खाते!


सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

जायें, सिद्धि पावें वे सुख से,


दुखी न हों इस जन के दुख से,


उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से ?


आज अधिक वे भाते!


सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

गये, लौट भी वे आवेंगे,


कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे,


रोते प्राण उन्हें पावेंगे,


पर क्या गाते-गाते ?


सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

No comments:

Post a Comment

जो जीवन ना बन सका ! || That Could Not Be Life ! || PoemNagari || Hindi Kavita

कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द  जो जीवन ना बन सके बस छाया या  उस जैसा कुछ बनके  ख...