Wednesday, June 9, 2021

Jiwan-Mantra || Short videos Series ||Part-23 || Kabir Das || PoemNagari

प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और ना ही प्रेम कहीं बाजार में बिकता है। जिसको प्रेम चाहिए उसे अपना शीश यानी क्रोध, काम, इच्छा और भय को त्यागना होगा।

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए ।
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ।

Love does not grow anywhere in the fields, nor does love sell anywhere in the market. One who wants love has to give up his head i.e. anger, lust, desire and fear.

prem na baaree upaje, prem na haat bikae .
raaja praja jo hee ruche, sis de hee le jae .

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