Wednesday, July 21, 2021

क्या सचमुच में कर्ण ने अपने गुरु को छला था ?|रश्मिरथी|Ep-10|रामधारी सिंह दिनकर|PoemNagari|Narrated by Kishor

पीछले अंक में आपने सुना कि राजाओं के छल-पर्पन्च की पोल खोलते हुए परशुराम राजाओं की शोषणकारी नीतियों की कड़ी आलोचना करते हैं, और ब्राहृमणो को खड्ग उठाने को प्रेरित करते हैं, और कहते हैं कि राजा सिर्फ अपना राज्य बढ़ाने और अधिक से अधिक जनों पर शोषण करने के लिए ही युद्ध करते हैं ,ना की किसी के भलाई के लिए - सही मायने में वही वीर है जो लोगों की भलाई के लिए खड्ग उठाता है, शायद इसी कारण परशुराम सिर्फ ब्रहृमणो को ही शिक्षा देते हैं।
अब आगे की कहानी सुनिए -









'जब-जब मैं शर-चाप उठा कर करतब कुछ दिखलाता हूँ,

सुनकर आशीर्वाद देव का, धन्य-धन्य हो जाता हूँ।

'जियो, जियो अय वत्स! तीर तुमने कैसा यह मारा है,

दहक उठा वन उधर, इधर फूटी निर्झर की धारा है।


'मैं शंकित था, ब्राह्मा वीरता मेरे साथ मरेगी क्या,

परशुराम की याद विप्र की जाति न जुगा धरेगी क्या?

पाकर तुम्हें किन्तु, इस वन में, मेरा हृदय हुआ शीतल,

तुम अवश्य ढोओगे उसको मुझमें है जो तेज, अनल।


'जियो, जियो ब्राह्मणकुमार! तुम अक्षय कीर्ति कमाओगे,

एक बार तुम भी धरती को निःक्षत्रिय कर जाओगे।

निश्चय, तुम ब्राह्मणकुमार हो, कवच और कुण्डल-धारी,

तप कर सकते और पिता-माता किसके इतना भारी?


'किन्तु हाय! 'ब्राह्मणकुमार' सुन प्रण काँपने लगते हैं,

मन उठता धिक्कार, हृदय में भाव ग्लानि के जगते हैं।

गुरु का प्रेम किसी को भी क्या ऐसे कभी खला होगा?

और शिष्य ने कभी किसी गुरु को इस तरह छला होगा?


'पर मेरा क्या दोष? हाय! मैं और दूसरा क्या करता,

पी सारा अपमान, द्रोण के मैं कैसे पैरों पड़ता।

और पाँव पड़ने से भी क्या गूढ़ ज्ञान सिखलाते वे,

एकलव्य-सा नहीं अँगूठा क्या मेरा कटवाते वे?


'हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था? जन्मा तो क्यों वीर हुआ?

कवच और कुण्डल-भूषित भी तेरा अधम शरीर हुआ?

धँस जाये वह देश अतल में, गुण की जहाँ नहीं पहचान?

जाति-गोत्र के बल से ही आदर पाते हैं जहाँ सुजान?


'नहीं पूछता है कोई तुम व्रती, वीर या दानी हो?

सभी पूछते मात्र यही, तुम किस कुल के अभिमानी हो?

मगर, मनुज क्या करे? जन्म लेना तो उसके हाथ नहीं,

चुनना जाति और कुल अपने बस की तो है बात नहीं।


'मैं कहता हूँ, अगर विधाता नर को मुठ्ठी में भरकर,

कहीं छींट दें ब्रह्मलोक से ही नीचे भूमण्डल पर,

तो भी विविध जातियों में ही मनुज यहाँ आ सकता है;

नीचे हैं क्यारियाँ बनीं, तो बीज कहाँ जा सकता है?


'कौन जन्म लेता किस कुल में? आकस्मिक ही है यह बात,

छोटे कुल पर, किन्तु यहाँ होते तब भी कितने आघात!

हाय, जाति छोटी है, तो फिर सभी हमारे गुण छोटे,

जाति बड़ी, तो बड़े बनें, वे, रहें लाख चाहे खोटे।'


गुरु को लिए कर्ण चिन्तन में था जब मग्न, अचल बैठा,

तभी एक विषकीट कहीं से आसन के नीचे पैठा।

वज्रदंष्ट्र वह लगा कर्ण के उरु को कुतर-कुतर खाने,

और बनाकर छिद्र मांस में मन्द-मन्द भीतर जाने।



आज के लिए बस इतना ही,
आगे की कहानी अगले भाग में,
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