तू खुद की खोज में निकल,
तू किस लिए हताश हैं,
तू चल-२
तेरे वजूद की समय को भी तलाश है,
जो तुझसे लिपटी बेड़ियां,
समझ ना इनको वस्त्र तू,
ये बेड़ियां पिघाल के,
बना लें इनको शस्त्र तू ,
तू खुद की खोज में.....
चरित्र जब पवित्र है ,
तो क्यों है ये दशा तेरी ,
ये पापीयों को हक़ नहीं ,
की लें परीक्षा तेरी ,
तू खुद की खोज में निकल ....
जला के भस्म कर उसे ,
जो क्रुरता का जाल है,
तू आरती की लौ नहीं ,
तू क्रोध की मशाल है ,
तू खुद .....
चुनर उड़ा के ध्वज़ बना ,
गगन भी कपकपाएगा,
अगर तेरी चुनर गिरी ,
तो एक भूकंप आएगा ,
तू खुद की खोज में निकल,
तू किस लिए हताश हैं,
तू चल ,तू चल ,
तेरे वजूद की समय को भी तलाश है ।
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