Friday, September 3, 2021

तीनों बंदर बापू के : नागार्जून ||हिंदी कविता||PoemNagari ||Hindi Kavita||Baba Nagarjun ||Best Poetry

प्रस्तुत कविता बाबा नागार्जुन द्वारा लिखित है ,

नागार्जुन (30जून 1911- 5 नवम्बर 1998) हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता तथा प्रगतिशील विचारधारा के साहित्यकार नागार्जुन ने हिन्दी के अतिरिक्त मैथिली संस्कृत एवं बाङ्ला में मौलिक रचनाएँ भी कीं तथा संस्कृत, मैथिली एवं बाङ्ला से अनुवाद कार्य भी किया। साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित नागार्जुन ने मैथिली में यात्री उपनाम से लिखा तथा यह उपनाम उनके मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र के साथ मिलकर एकमेक हो गया।
    
तीनों बंदर बापू के
नागार्जुन

बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू के! 

सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बंदर बापू के! 

सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बंदर बापू के! 

ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बंदर बापू के! 

जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बंदर बापू के! 

लीला के गिरधारी निकले तीनों बंदर बापू के! 

सर्वोदय के नटवरलाल 

फैला दुनिया भर में जाल 

अभी जिएँगे ये सौ साल 

ढाई घर घोड़े की चाल 

मत पूछो तुम इनका हाल 

सर्वोदय के नटवरलाल 

लंबी उमर मिली है, ख़ुश हैं तीनों बंदर बापू के 

दिल की कली खिली है, ख़ुश हैं तीनों बंदर बापू के 

बूढ़े हैं, फिर भी जवान हैं तीनों बंदर बापू के 

परम चतुर हैं, अति सुजान हैं तीनों बंदर बापू के 

सौवीं बरसी मना रहे हैं तीनों बंदर बापू के 

बापू को भी बना रहे हैं तीनों बंदर बापू के 

बच्चे होंगे मालामाल 

ख़ूब गलेगी उनकी दाल 

औरों की टपकेगी राल 

इनकी मगर तनेगी पाल 

मत पूछो तुम इनका हाल 

सर्वोदय के नटवरलाल 

सेठों का हित साध रहे हैं तीनों बंदर बापू के 

युग पर प्रवचन लाद रहे हैं तीनों बंदर बापू के 

सत्य अहिंसा फाँक रहे हैं तीनों बंदर बापू के 

पूँछों से छवि आँक रहे हैं तीनों बंदर बापू के 

दल से ऊपर, दल के नीचे तीनों बंदर बापू के 

मुस्काते हैं आँखें मीचे तीनों बंदर बापू के 

छील रहे गीता की खाल 

उपनिषदें हैं इनकी ढाल 

उधर सजे मोती के थाल 

इधर जमे सतजुगी दलाल 

मत पूछो तुम इनका हाल 

सर्वोदय के नटवरलाल 

मूँड़ रहे दुनिया-जहान को तीनों बंदर बापू के 

चिढ़ा रहे हैं आसमान को तीनों बंदर बापू के 

करें रात-दिन टूर हवाई तीनों बंदर बापू के 

बदल-बदल कर चखें मलाई तीनों बंदर बापू के 

गांधी-छाप झूल डाले हैं तीनों बंदर बापू के 

असली हैं, सर्कस वाले हैं तीनों बंदर बापू के 

दिल चटकीला, उजले बाल 

नाप चुके हैं गगन विशाल 

फूल गए हैं कैसे गाल 

मत पूछो तुम इनका हाल 

सर्वोदय के नटवरलाल 

हमें अँगूठा दिखा रहे हैं तीनों बंदर बापू के 

कैसी हिकमत सिखा रहे हैं तीनों बंदर बापू के 

प्रेम-पगे हैं, शहद-सने हैं तीनों बंदर बापू के 

गुरुओं के भी गुरु बने हैं तीनों बंदर बापू के 

सौवीं बरसी मना रहे हैं तीनों बंदर बापू के 

बापू को ही बना रहे हैं तीनों बंदर बापू के! 

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