Monday, November 15, 2021

भईया देहाती || भोजपुरी कविता || गोपाल सिंह नेपाली|| चम्पारण के लोग हंसेला || PoemNagari

तुम इतने प्यारे थे तुमसे 
पूरी दुनिया सरल हुई हम इतने मुश्किल थे जो 
तुमसे भी हल न हो पाए
किस्मत ने हम दोनों को 
हर युग में ही मिलवाया है हम अपना मिलना लेकिन 
हर बार सफल न कर पाए
धूप तुम्हारे रूप की कैसे 
दो आँखों में भर पाते कैसे अम्बर के प्रश्नों का 
धरती पर उत्तर पाते
हम तो शापित प्रेमी हमको 
न कोई अधिकार मगर जादूगर भी इस दुनिया को 
तुम जैसी न कर पाते

नमस्कार दोस्तों, अमन अक्षर जी की लाजबाव लाईनों के साथ 
आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है हमारे यूट्यूब चैनल पोयम नगरी में, 
आज का दिन मेरे लिए बहुत ही खास है, क्योंकि आज मेरा जन्मदिन है , इसके पहले की आप आज के खास इस कार्यक्रम में खो जाएं , मैं शुक्रिया अदा करना चाहता हूं , उन तमाम मित्रों का जिन्होंने सुबह से लगातार जन्मदिन की शुभकामनाएं वाले मैसेजो से मोबाइल फ़ोन में भुचाल मचा रखें हैं , आप सभी के प्यार और आशीर्वाद का मैं ऋणी हुं ।

प्यारे मित्रों , मैं आशा करता हूं की आप सभी जहां भी होंगे बड़े मजे में और प्यार से होंगे, कोविड के बाद ज़िन्दगी फिर से वापस चल पड़ी है , एक नई उमंग और जोश के साथ - कभी कभी चुनौतियां एक अद्भुत चमत्कार के रूप में विकसित होकर हमारे जीवन को बेहतर बना जाती हैं और मुझे लगता है कि जिस तरह हम सभी में इस महासंकट के समय - "सर्व जन हिताय सर्वजन सुखाय " की भावना विकसित हुई है - वो और बढ़ेगी और मजबूत होगी,
 इसी प्रकार एक और महामारी जो आज भी विश्व को अलग-अलग खेमों में काटती - छाटती रहती है- Radicalism , कट्टरपंथ की भावना , अब वक़्त आ गया है कि हम सभी वैश्विक समावेशी समाज की ओर अग्रसर हो , जो हो भी रहा है ।
 भाषा, धर्म, जाति , सम्प्रदाय के रूप में सहज हो, एक दूसरे के विकास में सहयोगी बनें ना कि विरोधी । अपनी भाषा अपनी बोली की मधुरता को जीए उससे सीखें - यह हमें बहुत कुछ सिखा सकतीं हैं साथ ही कुछ कुरितियां भी होंगी जिसे सहजता से दूर करने की भी जरूरत होंगी - 

 आज मैं अपनी बोली " भोजपुरी " में आपको एक बहुत ही प्यारी कविता सुनाऊंगा, लेकिन उसके पहले कुछ मित्रों के सवालों का जबाव देना चाहता हूं जो अक्सर मुझे message करके पुछते रहते हैं की मैं कहां हूं और क्या कर रहा हूं - 
तो प्यारे मित्रों सबसे पहले मैं यह बताना चाहता हूं कि मैं आप सभी को बहुत याद करता हूं - जब भी आपकी मैसेज आती है साथ में एक लम्बी यादों की बारात भी लाती है । लेकिन समय का ताकाज - हम सभी को अपने- अपने कार्य क्षेत्र में बांधे रखा है- मैं अभी New Delhi में हुं , COVID के पहले मैंने master Complete करा है English Literature में , और अभी प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहा हुं पीछले महिने मैंने Upsc Prelims की exam दी है और अगले महीने में ugc net का exam दूंगा - अभी कोई जगह नहीं मिल पाया है , मगर मेहनत जारी है । 
कहते हैं ना की - 
जीत और हार आपकी सोच पर निर्भर करता है ,
मान लो तो हार और ठान लो तो जीत ।
अब मैं जो कविता आपको सुनाने जा रहा हूं वह गोपाल सिंह नेपाली जी द्वारा लिखित है , इसके पहले भी मै नेपाली जी की कुछ कविताएं आप सभी को सुनाई है , लेकिन यह कविता कुछ विशेष है - पहली बात तो यह की यह कविता नेपाली जी और मेरी मातृभाषा भोजपुरी में है , जिसका मिठास ही अलग है , दूसरी बात यह की यह कविता चम्पारण के गौरवशाली इतिहास को उजागर करती है और इसकी विशेषता से साक्षात्कार कराता है ।
 कविता का टाईटल है " चम्पारण के लोग हंसेला " |
 
उत्तर और सोमेसर खड़ा , दखिन गंडक जल के धारा,
पूरब बागमति के जानी , पश्चिम में त्रिवेणी जी बानी ।।
माध मास लागेला मेला,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
त्रिवेणी के नामी जंगल ,
जहवां बाघ करेला दंगल ,
 बड़का दिन की छुट्टी होला,
बड़-बड़ हाकिम लोग जुटेला ,
केतना गोली रोज छुटेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
नदी किनारे सुंदर बगहां ,
मालन के ना लागे पगहा ,
परल इहां संउसे बा रेत ,
चरके माल भरेले पेट ,
रेल के सिलपट इन्हा बनेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।


इन्हा मसान नदी बउरहिया ,
ऊपर डुगरे रेल के पहिया ,
भादों में जब इ फुफआले,
एकर बरनन करल ना जाले ,
बड़का- बड़का पेड़ दहेला, 
चम्पारण के लोग हंसेला ।
इहे रहे विराट के नगरी ,
जहवां पांडव कईलें लीला ,
इहवें बा विराट के टीला ,
बरनन वेद-पुराण करेला,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
परल इंहवा पानी के टान ,
अर्जुन मरलें सींक के बाण,
सींक बाण धरती में गईल,
सिकरहना नदी बह गईल,
जेकर जल हर घड़ी बहेला,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
रामनगर राजा नेपाली,
मांगन कबों ना लौटें खाली ,
इहां हिमालय के छाया बा ,
इन्हा अजबे कुछ माया बा ,
एही नदी में स्वर्ण दहेला,
चम्पारण के लोग हंसेला ।


रामनगर के धनहर खेती ,
एकहन खेत रोहू के पेटी ,
चार महीना लोग कमाला ,
आठ महीना बइठल खाला ,
दाना बिना केहु ना मरेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
इहां जाई चानकी पर चढ़,
देखी लौरिया में नंदनगढ,
केहु कहे भीम के लाठी ,
गाड़ल बा पत्थर के जाथी ,
लोग अशोक के लाट कहेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
नरकटियागंज देखीं गाला ,
मंगर शनिचर हाट के हाला ,
अन्न इहां ना मिली बाउर,
भात बने बटुआ गमकेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
आगे बढ़ी चलीं अब बेतिया ,
बीच राह में बा चनपटिया ,
इहां मिलें मरचा के चिउरा ,
किन-किन लोग भरेला दउरा, 
गाड़ी- गाड़ी धान बिकेला,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
बेतिया राजा के राजधानी ,
रहले भूप करन अस दानी ,
पच्छिम उदयपुर बेंतवानी ,
बढ़िया सरेयां मन के पानी ,
दूर -दूर के लोग पियेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।


बेतिया के मीना मशहूर,
गिरिजाघर भूकंप में चूर ,
बाड़े अब-तक बाग़ हजारी,
मेला लागे दशहरा के भारी ,
हाथी,घोड़ा , बैल , बिकेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
आलू डगरा बस बेतिया के ,
भेली सराहीं जोगिया के ,
गुड़ चीनी के मात करेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
बेतिया के दक्षिण कुछ दूर ,
बथना गांव बसल मशहूर ,
इहां बा लाला लोग के बस्ती,
धंधा नौकरी और गिरहस्ती ,
एमे केतना लोग बसेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
चम्पारण के गढ़ मोतिहारी,
भईल नाम दुनिया में भारी ,
पहिले इहे जिला जागल ,
गोरन का मुंह करिखा लागल,
नीलहा अबतक नाम जपेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
गांधी जी जब भारत में अइलें ,
पहिले इहवा सत्याग्रह कईले ,
लीलहा देखी भाग पराईले ,
तब से ना चम्पारण आइले,
मोतिहारी के नाम जपेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।


गोरे- गोरखा भइल लड़ाई ,
हारे पर जब भइलें गोरा ,
धर दिहले गोली के बोरा ,
भईल सुलह इतिहास कहेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
कंवराथियां के देखीं राबा ,
अरेराज बउराहवा बाबा ,
नामी अरेराज के मेला ,
आके दरशन लोग करेला ,
फागुन तेरस नीर चढेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
छपरा जिला गोरखपुर बस्ती, 
जेकर इंहा होत परवस्ती,
केहू नोकरी केहू नाच करेला ,
मांगन लोग दिन-रात रहेला ,
केतना लोटा झाल बजेला, 
चम्पारण के लोग हंसेला ।
खाए में जब खटपट भइलें,
भाग के तब चम्पारण अईलें ,
मांगी-चांगी के धन-धान्य कमइले ,
मांगन से बाबू बन गईलें ,
अइसन केतना लोग बसेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
सब दिन खईलें सतुआ लिट्टी ,
इहां परल देहिया पर पेटी ,
बाप के दुःख भूल गईलें बेटा, 
भोर परल माटी के मेटा ,
अब त लाख पर दिया जरेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।


का करिहें कविलोग बड़ाई ,
जग चम्पारण के गुण गाई ,
आपन कमाई अपने खाला ,
केहू से ना मांगें जाला ,
 ए देख दुश्मन ठठुरेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
रहले उ कविचूर के साथी ,
इहवें के भईया देहाती,
कविता बा उ देहिया नईखें ,
गगरी भरल खींचाते नईखें ,
रटना अबहीं लोग करेला ,
चम्पारण के लोग हंसेला ।
  
प्यारे मित्रों मैं मानता हूं की इसी प्रकार हरेक क्षेत्र विशेष की अपनी अपनी बिशेषताएं है , हमारा देश भारतवर्ष तो इसी अनेकाता और बिशेषता के संगम सेतू का गठजोड़ है । अनेकता में एकता ही हमारी ताकत है ।
आज का मेरा यह प्रयास आपको कैसा लगा , अपनी प्रतिक्रिया जरूर लिखी , फिर मिलते हैं ,तब तक के लिए नमस्कार ।

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