आज इस २१ वीं सदी में मंगल यात्रा कर जीवन के नय आयाम की खोज हमे उम्मीद और उत्सुकता से भरता है, वही दुसरी तरफ हमारे समाज में आज भी बहुत सारे लोग बिन खाएं हर रोज सोते है ,उनके रहने के लिए घर नहीं है ,पीने के लिए साफ पानी नहीं है,जीवन को किसी तरह काट रहे हैं ,आप वैसी कल्पना भी नहीं कर सकते जैसे की उन्हें हर रोज रहनी पड़ती है,बहुत ही दुखदाई जीवन, इस स्थिति में हमारे ही लोगो को देख कर ,सारी की सारी प्रगति में कुछ कमी का आभास नहीं होता !

आज सारी दुनिया इस महामारी के चपेट में आकर अपने ही घर से निकल नहीं पा रही है , वही हमारे देश के हजारों मजदूर जो बेघर है ,उनका क्या ?? मज़बूरी में मजदूरी कर अपना जीवन बिताने वाले हजारों श्रमिक आज किस हाल में है इसकी परवाह किसे हैं ?? सरकार कुछ मदद भी करती है तो सबके लिए प्रयाप्त नहीं होती, आज हालत यह है कि दुःख और तकलीफ के अथाह महासागर में फंसा मजदूर महामारी के मुंह में आने से पहले भुखरूपी दानव का निवाली बनता जा रहा है और जो थोड़े बचते तो उनके चौखट पर महामारी मुंह बाए पहले से खड़ी है ,उनके इस हालत के सारे के सारे सिर्फ वही जिम्मवार है या कोई और भी है, यह सवाल है ??
# मजदूर
मजदूर हुआ मजबूर
है जिसका यह कसूर!
खाएं -पिए बिन सोए -जागे
मेहनत करता रहा भरपूर
महल बनाए, बड़े अटारी
समझ ना पाया दुनियादारी
अब मरने को मजबूर
है जिसका यह कसूर !
मजदूर हुआ मजबूर ।
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