Sunday, July 19, 2020

# बाढ़ आया

# बाढ़ आया 
नदियां उफनी, सड़कें टुटी, 
पुल- पुलिया ले गई  बहाय,
घर में पानी  आते देख,
हाय - हाय अब सब चिल्लाए !
प्राण रक्षक जल  बनी भक्षक
महाप्रलय सी  बढ़ती जाए.....
   
बाढ़ शब्द का नाम सुन कर  मन में एक ऐसी छवि आती है ,जिसमें चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी हो, जहां तक नज़र जाती है एक अथाह समुंद्र सा प्रतित होता है, आज देश के कई इलाकों में बाढ़ अपनी कहर बरसा रही है , उड़ीसा,पश्चिम बंगाल ,केरल और बिहार  सहित देश के कई राज्यों में तो हर साल ये भारी तबाही लाती है,इस साल भी हमे इसके बिकराल , भयावह और प्रलयकारी रूप देखने को मिल रही है ,  बिहार के साथ साथ देश की राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं है वहां का स्थिति भी बहुत ही निराशजनक है ,
  इस साल  हमें बहुत ही विषम परिस्थितियों की सामना करनी पड़ रही है, पहले तो  महामारी की मार और अब बाढ़  की प्रलयकारी  रूप देखने को मिल रही है , इन दोनों ही विशाल संकट के सामने आज भी इंसान बौना ही दिखाई देता है ,भले ही हम उन्नत तकनीक से लैस होते जा रहे है पर प्रकृति जब अपनी विनाशकारी रूप में सामने आती है तो हमारी एक नहीं चलती ,प्रकृति के गोद में पले बढे हम सभी जब अपनी स्वार्थसिद्धि में अंधे होकर  बिन सोचे समझे ,आगे बढ़ते जाते है तो हमे नई नई आपदाओं का भी सामना करना पड़ता है,खैर इंसान तो सदियों से चुनौतियों पर विजय पाते आ रहा है परंतु जब तक हम कोई समाधान सुझाते है तब तक हजारों जिंदगियां विपदाओं के की भेंट चढ़ जाती है ,तो क्या हम समय रहते उन्हें समझदारी से सुलझा नहीं सकते ? आज भी देश के कई हिस्सों में जो आपदाएं आए हैं ,उसके प्रभाव कई हद तक कम किया जा सकते था ,अगर सही प्रबन्धन से लोग और सरकार मिलकर सही दिशा में काम करते , कुछ स्वार्थी लोग सिर्फ अपनी जेब भरने में हजारों के प्राण बेपरवाही से ले लेते है ,ये नहीं कि उनका नुकसान नहीं होता वो भी मरते है और साथ में हजारों जिंदगियों के मौत के कारण बनते हैं, थोड़ी जागरूकता से देखे तो जरूर समझ में आ जाएगा कि दूसरे के हक को छीन कर समृद्ध नहीं बाना जा सकता , जबकी सुख और समृद्धि परस्पर सहयोग और सबके साथ सबकी समृद्धि से ही संभव है , राज्य सरकारें और केंद्र सरकार एवं सरकार की नीतियों को कार्यान्वित करने वाले विभिन्न अंगो के लोगो की ईमानदारी बहुत सारी परेशानियां कम कर सकती है ,देश  में बनाए गए करोड़ों के लागत से बने पुल कुछ ही महीनों में धराशाही होकर बिखर जाते है ,बाढ़ की पहली घार  में ही जवाब दे देते है, हजारों लोगों पर इस  तरह से आई संकट के कारण  का जिम्मवर कौन है ? प्रकृति या स्वयं मनुष्य ! 


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