#बेचैन मन
मै प्यार का परिंदा हूं,
परवाह किसे है किसी का यहां,
पागल हूं, परवाना हूं
रंग एक नहीं ,बहुरंगी की भी जाना हूं,
जज़्बात नए, ज़ख्म भी पाया हूं,
जो जंग रहा वह आज खतम,
ज़ख्मी दिल पर उनका ही कायल हूं,
देखी दुनिया और सबकी यारी ,
होती दर्द बड़ी या गद्दारी ?
ज़ख्म हरा पर हार ना मानी,
जन्म जन्म की साथ हमारी,
पर पगदंडी पर,पर परवाज़ पुरानी ,
ख़ामोशी खत्म नहीं होती ,
पर ख्याल है खुशी की हमारी,
एक बात पूछूं...
मन में बहुत सारी बाते आने लगती हैं,और मन बेचैन होने लगता है ,अपनी वास्तविक पहचान खोने लगती है और स्वयं को हम बहुत कमजोर और लाचार महसूस करने लगते है,यह क्यों होता है पता नहीं ,पर जब हम स्वार्थी होकर सिर्फ़ अपने सुख की बात सोचने लगते है, तो हम खुद को बेचैन और असहाय महसूस करने लगते है, खुद का मन ही खुद के लिए बहुत सारी परेशानियां पैदा करने लगता है,और हम उसने उलझते चले जाते है यदि ऐसे ही बेकार की बातें लगातार कुछ दिनों तक मन को परेशान करती रहे तो निश्चित तौर पर हम अपने मानसिक संतुलन को बैठेंगे ऐसा आभास होता है लेकिन मुझे इस बात का भी यकीन है कि अगर कोई समस्या उत्पन्न हो रही है तो मन जरूर ही इसका समाधान ढूंढ निकालेगा या कुछ ऐसी समझदारी आएगी जो हमें भटकने से बचा लेगी
अभी कुछ देर पहले जब मैं चुपचाप अपने कमरे में अपने बीते समय और उसके सुनहरे पल के बारे में सोच रहा था तो मन में बहुत उथल-पुथल मच रही थी मन फिर से तरस उठता है उन सुनहरे पलों को फिर से जीने को मगर यह मुमकिन ऐसा नहीं लगता है तब एक सिरहन सी दिलो दिमाग और इस शरीर में दौड़ उठती है , एक व्याकुलता और बाद में हताशा के साथ मन बैठने लगता है और खोने लगता है निराशा के घनघोर अंधेरे में चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा कहीं कोई आशा के दीपक भी नहीं दिखाई पड़ते तब इस जीवन के प्रत्येक नाउम्मीदी में भी पैदा होती है और मैं क्यों जीवित हूं इस बात की भी चिंता होती है और मन अंदर ही अंदर खुद को मारने लगता है और धड़कन ए थमने लगती है आखिर यह जीवन किस काम का जिसमें किसी का प्यार ना हो कोई ऐसा ना हो जो मेरे लिए खुश होता हो जब जीवन में कोई ऐसा साथी ना हो जो आपके साथ हर समय एक विश्वास और प्यार की परछाई बनकर आपके साथ हर समय एक विश्वास और प्यार की परछाई बनकर आपके कदम कदम से आपके जीवन यात्रा का हमसफर बने जो मन खुद को क छोड़ता है और जीने की उम्मीद है धीरे-धीरे खत्म होने लगती है अभी मैं जवान हूं पढ़ा लिखा एक होनहार लड़का हूं अभी जीवन की सारी संभावना है मेरे लिए संभव है अभी मैं दुनिया की हर मुकाम हासिल कर सकता हूं जो मेरे मन में है पर किसके लिए उतनी साहस करू आखिर मैं क्यों इतनी जी जान लगाऊ और सारी दुनिया को अपने कदमों में झुकाऊं,

यह एक ऐसा उम्र होता है जब हमें एक ऐसी दोस्त की जरूरत होती है जो हमें हमारे लक्ष्य के प्रति हमेशा जागरूक रखें जो हमें निराशा से उबार कर ,हमारे जीवन में हर रोज एक उम्मीद का उत्साह बनकर आए जीने का मन करें और उसके सपनों के लिए बार-बार हम संघर्ष कर सके ,मरते दम तक जीवन की आखिरी सांसे भी जब छोटे हैं तो आंखों में पानी हो पर मन में संतोष हो कि मेरा जीवन सार्थक रहा और फिर से जीने की उम्मीद के साथ इस दुनिया से हम अलविदा ले ,क्या ऐसा संभव है ? क्या मेरे जीवन में भी ऐसा कुछ होगा ? पता नहीं मैं यह नहीं कहता कि मेरे जीवन में कोई खुशी नहीं आई, पर हां मैं उन लोगों की खुशियों के लिए फिर से वापस वहां नहीं जा सकता इस पागल मन को समझाने वाला शायद मिले और जीवन फिर से सपने सजाए और खुश होकर जीवन का आनंद लें ।
Awesome writting bro
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