जमाने की हर दुख सह लेती हैं ,
गमों मे भी घुट - घुट कर रह लेती हैं
ममता की आँचल तुझपे ओढ़कर ,
तुझको नया एक जन्म देती है
काल की गाल न आए कभी ,
जिन्दगी चाहे मेरी तू लेले अभी ,
माँगे हर दम यहीं रब से दुआ ,
ना आये कभी मेरे लाल पर बददुआ
हर दम रहे यह खुशी चैन से ,
जमाने की हर खुशी मिले इसे ,
ममता की मूरत बनी रहती हरदम ,
मिले खुशी या मिलता रहे गम ,
तू है तो अब उसे क्या कमी हैं ,
अन्धेरों में भी मिल रही रौशनी हैं
मृत्युंजय बना दूँ हरदम वह चाहे ,
सिकन्दर बना दू हरदम वह चाहे
सोया है क्यों अब तो जाग जा ,
दिल ना दुःखे माँ का यह जान जा
जब तक जीवन है कुछ तो किये जा
मर के भी माँ के दिल में रहे जा
बदलती रंग ज़माना पर माँ नहीं बदल सकी
माँ के ममता का क्या सागर मुकाबला कर सके ,
ममता की मंदिर की माँ तु है मुरत ,
इससे पैदा होती हैं दुनिया की हर एक सूरत !
मां शब्द अपने आप में बहुत ही अनूठा और चमत्कारी है, बच्चों की पहली तोतली बोली मां ही माता पिता के कानों में अमृत घोलती है, यह एक ऐसा शब्द है ,जिसमें संसार के सारे भाव व्यक्त हो जाते है,मां करतल ध्वनि से मां बच्चे की मन की हर भाव समझ जाती है, कितना प्यारा, सच्चा और स्नेह संजोए हुए है ये शब्द !Old Aged Home( वृद्धा आश्रम ) का नाम सुन कर मन आशंकित हो उठता है,जीवन में हर एक जीवित प्राणी को अपने वृद्धावस्था से गुजरी होती है, मै यह नहीं कहता कि ये दिन बहुत दुखदाई और तकलीफदेह होती है,आप बचपन को ही देखे तो मालूम पड़ता है कि जब कोई बच्चा पैदा होता है तो वह कितना आशय होता है ,कहीं पर कुछ भी कर देता है ,क्योंकि उसकी यह कोमल और प्यारा शरीर अभी विकसित नहीं हुआ होता है,माता पिता उसकी इस अवस्था की भली भांति समझते है,और बड़े ही लड़ ,प्यार और दुलार के साथ उसकी परवरिश करते है,एक एक दिन चलकर वह अपनी पैरो पर खड़ा होता है , उसी प्रकार जब मा बाप वृद्ध होते है तो बच्चे ना जाने क्यों उनकी इस स्थिति को नहीं समझ पाते है,और अकेला किसी अनजान जगह में छोड़ आते है ,मै कोई बड़ी ज्ञान की बात नहीं बता रहा यह हो एक सहज अनुभूति है,मै यहां पर कर्तव्य , अधिकार या नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ रहा हूं, मैं तो बस यही कर रह हूं कि अगर आप उस स्थिति में होंगे तो क्या आपको अपने प्यारे दोस्तो और संबंधियों का साथ प्यारा नहीं लगेगा ?जीवन बहुत ही प्यारी होती है पर हम छोटे छोटे बातो से अपने ही मित्रो से ताउम्र दूरी बनाए रहते है यह कहां तक ठीक होता है, हम जीवन में चाहे जितना भी कुछ क्यों ना कर ले, हमारे सुख और दुःख के साक्षी ,हमे संघर्ष में साथ रहे हमराही हमेशा दिल के करीब होते है,और मां तो हमारी जननी है इस जीवन अस्तित्व और विकास की डोर है, तो इस जीवन डोर को तोड़ जाने पर, क्या हम सही मायनों में खुद को सहज रख पाएंगे ?जीवन की सार्थकता जहां तक मैं समझ सका हूं , वह पूर्ण समग्रता से सम्मिलित होने में है , किसी से दूर जाना या दूर करने या रहने में नहीं है ,आप जहां भी हो सब में हो और सब अपने ,मां का स्मरण जीवन निर्माण और विकास एक अभिन्न अंग है,
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