Tuesday, November 17, 2020

Ham To Mast Phakir | HindiPoetry|Gopaldas"Neeraj"|PoemNagari

प्रस्तुत कविता गोपालदास नीरज जी द्वारा लिखित है।

हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे।


जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे।

रामघाट पर सुबह गुजारी


प्रेमघाट पर रात कटी


बिना छावनी बिना छपरिया


अपनी हर बरसात कटी


देखे कितने महल दुमहले, उनमें ठहरा तो समझा


कोई घर हो, भीतर से तो हर घर है वीराना रे।

हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे।


जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे।


औरों का धन सोना चांदी


अपना धन तो प्यार रहा


दिल से जो दिल का होता है


वो अपना व्यापार रहा


हानि लाभ की वो सोचें, जिनकी मंजिल धन दौलत हो!


हमें सुबह की ओस सरीखा लगा नफ़ा-नुकसाना रे।

हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे।


जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे।

कांटे फूल मिले जितने भी


स्वीकारे पूरे मन से


मान और अपमान हमें सब


दौर लगे पागलपन के


कौन गरीबा कौन अमीरा हमने सोचा नहीं कभी


सबका एक ठिकान लेकिन अलग अलग है जाना रे।

हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे।


जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे।

सबसे पीछे रहकर भी हम


सबसे आगे रहे सदा


बड़े बड़े आघात समय के


बड़े मजे से सहे सदा!


दुनियाँ की चालों से बिल्कुल, उलटी अपनी चाल रही


जो सबका सिरहाना है रे! वो अपना पैताना रे!

हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे।


जैसा अपना आना प्यारे, वैसा अपना जाना रे

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