Wednesday, November 25, 2020

Ham Deevano Ki Kya Hasti |HindiPoetry| Bhagwati Charan Verma | PoemNagari

यह  कविता भगवतीचरण वर्मा द्वारा लिखित है।


हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले ।


मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले ।

आए बनकर उल्लास कभी, आंसू बनकर बह चले अभी


सब कहते ही रह गए, अरे, तुम कैसे आए, कहाँ चले ।

किस ओर चले? मत ये पूछो, बस, चलना है इसलिए चले


जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले ।

दो बात कहीं, दो बात सुनी, कुछ हंसे और फिर कुछ रोए


छक कर सुख-दुःख के घूँटों को, हम एक भाव से पिए चले ।

हम भिखमंगों की दुनिया में, स्वछन्द लुटाकर प्यार चले


हम एक निशानी उर पर, ले असफलता का भार चले ।

हम मान रहित, अपमान रहित, जी भर कर खुलकर खेल चुके


हम हँसते हँसते आज यहाँ, प्राणों की बाजी हार चले ।

हम भला-बुरा सब भूल चुके, नतमस्तक हो मुख मोड़ चले


अभिशाप उठाकर होठों पर, वरदान दृगों से छोड़ चले ।

अब अपना और पराया क्या, आबाद रहें रुकने वाले


हम स्वयं बन्धे थे और स्वयं, हम अपने बन्धन तोड़ चले ।

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