अमृता प्रीतम का जन्म १९१९ में गुजरांवाला पंजाब (भारत) में हुआ। बचपन बीता लाहौर में, शिक्षा भी वहीं हुई। किशोरावस्था से लिखना शुरू किया: कविता, कहानी और निबंध। प्रकाशित पुस्तकें पचास से अधिक। महत्त्वपूर्ण रचनाएं अनेक देशी विदेशी भाषाओं में अनूदित।
१९५७ में साहित्य अकादमी पुरस्कार, १९५८ में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कृत, १९८८ में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार;(अन्तर्राष्ट्रीय) और १९८२ में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित। उन्हें अपनी पंजाबी कविता अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ के लिए बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है और यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सराही गयी।
प्रस्तुत कविता अमृता प्रीतम जी द्वारा लिखित है ।
मैं तुम्हें फिर मिलूँगी
अमृता प्रीतम
अनुवाद : अमिया कुँवर
कहाँ? किस तरह? नहीं जानती
शायद तुम्हारे तख़्ईल की चिंगारी बन कर
तुम्हारी कैनवस पर उतरूँगी
या शायद तुम्हारी कैनवस के ऊपर
एक रहस्यमय रेखा बन कर
ख़ामोश तुम्हें देखती रहूँगी
या शायद सूरज की किरन बन कर
तुम्हारे रंगों में घुलूँगी
या रंगों की बाँहों में बैठ कर
तुम्हारे कैनवस को
पता नहीं कैसे-कहाँ?
पर तुम्हें ज़रूर मिलूँगी
या शायद एक चश्मा बनी होऊँगी
और जैसे झरनों का पानी उड़ता है
मैं पानी की बूँदें
तुम्हारे जिस्म पर मलूँगी
और एक ठंडक-सी बन कर
तुम्हारे सीने के साथ लिपटूँगी...
मैं और कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक़्त जो भी करेगा
इस जन्म मेरे साथ चलेगा...
यह जिस्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है
पर चेतना के धागे
कायनाती कणों के होते हैं
मैं उन कणों को चुनूँगी
धागों को लपेटूँगी
और तुम्हें मैं फिर मिलूँगी...
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