Wednesday, December 29, 2021

यूं ही कभी पूछ लिया हो||WalkieTalkie|| Ep-03||PoemNagari|चाँद और कवि| रामधारी सिंह दिनकर की कविता

नमस्कार दोस्तों मैं आपका दोस्त किशोर आप सभी का स्वागत करता हूं walkie Talkie तीसरे इपिसोड में, हर रविवार रात के नौ बजे मैं आप सभी से मिलता हूं कुछ खट्टी-मीठी बातों के साथ एक कविता लेकर ।
        प्यारे मित्रों , ठंडी पहले से बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है, मुझे आशा है की आप सभी अपना बहुत बढ़िया से ख्याल रख रहे होंगे , आपके यहां मौसम का क्या मिजाज है ? कमेंट बॉक्स में मुझे बताएं - साथ ही यह भी ख्याल रखें कि आपके आस पास इस मौसम के मार से कोई बेहाल तो नहीं ... जिनकी आप मदद कर सकते हो ? आपके सहयोग से किसी को आराम मिले , इससे बड़े सुकून के पल क्या ही हो सकता हैं ।
  दोस्तों क्या आप कभी रात में चांद से बातें की हैं , या यूं कहें की आसमान में चांद को देख कर कुछ कल्पनाएं की है, जैसे की यूं ही कभी पूछ लिया हो - ओ चंदा मामा आप तो सदियों से इस दुनिया को निहारते आ रहे हो , तो कुछ ऐसा मुझे बताओ जो सिर्फ तुम जानते हो , क्योंकि हमारी ये छोटी-छोटी आंखें बहुत सारी चीज़ें को देख ही नहीं पाती - और फिर चांद को एक टक से निहारे हुए आपके मन में अथाह सवालों और जबाबों का सिलसिला शुरू हो गया हो - 

प्यारे मित्रों दिनकर जी एक ऐसी ही कविता है जिसका नाम है - चांद और कवि - को सुनते हैं ।

रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद,
आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!
उलझनें अपनी बनाकर आप ही फँसता,
और फिर बेचैन हो जगता, न सोता है।

जानता है तू -2 कि मैं कितना पुराना हूँ?
मैं चुका हूँ देख मनु को जनमते-मरते;
और लाखों बार तुझ-से पागलों को भी
चाँदनी में बैठ स्वप्नों पर सही करते।

आदमी का स्वप्न? है वह बुलबुला जल का
आज उठता और कल फिर फूट जाता है
किन्तु, फिर भी धन्य; ठहरा आदमी ही तो?
बुलबुलों से खेलता, कविता बनाता है।

मैं न बोला किन्तु मेरी रागिनी बोली,
देख फिर से चाँद! मुझको जानता है तू?
स्वप्न मेरे बुलबुले हैं? है यही पानी?
आग को भी क्या नहीं पहचानता है तू?

मैं न वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ,
और उस पर नींव रखता हूँ नये घर की,
इस तरह दीवार फौलादी उठाती हूँ।

मनु नहीं, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है,
वाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

स्वर्ग के सम्राट को जाकर खबर कर दे,
"रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे हैं वे,
रोकिये, जैसे बने इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते आ रहे हैं वे।"

 प्यारे मित्रों आज हम जो निरंतर प्रगतिशील है ,यह हमरी कल्पना शक्ति की ही देन है, Imagination -  
इंसान imagine करता है और उसे आकार देता है - 
क्या आपने भी imagine करके कोई कविता लिखी है, तो हमें जरूर भेजें , हमें बहुत खुशी होगी , आज के लिए इतना ही । फिर मिलता हूं तब तक के लिए
मुझे इजाज़त दे, नमस्कार।

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