Tuesday, March 29, 2022
If by Rudyard Kipling ( A Life Changing Poem ) || PoemNagari
परंपरा ||हिन्दी कविता || रामधारी सिंह दिनकर || PoemNagari
Friday, March 25, 2022
उतनी दूर पिया तू मेरे गांव से ||हिन्दी कविता || कुंअर बेचैन ||PoemNagari #love #poetry #hindipoetry
प्रस्तुत कविता कुंअर बेचैन जी द्वारा लिखित है।
कविता का शीर्षक - उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
लेखक - कुंअर बेचैन
जितनी दूर नयन से सपना
जितनी दूर अधर से हँसना
बिछुए जितनी दूर कुँआरे पाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
हर पुरवा का झोंका तेरा घुँघरू
हर बादल की रिमझिम तेरी भावना
हर सावन की बूंद तुम्हारी ही व्यथा
हर कोयल की कूक तुम्हारी कल्पना
जितनी दूर ख़ुशी हर ग़म से
जितनी दूर साज सरगम से
जितनी दूर पात पतझर का छाँव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
हर पत्ती में तेरा हरियाला बदन
हर कलिका के मन में तेरी लालिमा
हर डाली में तेरे तन की झाइयाँ
हर मंदिर में तेरी ही आराधना
जितनी दूर प्यास पनघट से
जितनी दूर रूप घूंघट से
गागर जितनी दूर लाज की बाँह से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
कैसे हो तुम, क्या हो, कैसे मैं कहूँ
तुमसे दूर अपरिचित फिर भी प्रीत है
है इतना मालूम की तुम हर वस्तु में
रहते जैसे मानस् में संगीत है
जितनी दूर लहर हर तट से
जितनी दूर शोख़ियाँ लट से
जितनी दूर किनारा टूटी नाव से
उतनी दूर पिया तू मेरे गाँव से
पड़ोसी ||हिन्दी कविता || अटल बिहारी वाजपेयी || काश्मीर पर भारत का नजरिया ||PoemNagari #hindipoetry
प्रस्तुत कविता अटल बिहारी वाजपेयी जी द्वारा लिखित है।
कविता का शीर्षक - पड़ोसी
लेखक - अटल बिहारी वाजपेयी
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
बलिदानो से अर्जित यह स्वतन्त्रता,
अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता।
त्याग तेज तपबअगणितल से रक्षित यह स्वतन्त्रता,
दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता।
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो,
चिनगारी का खेल बुरा होता है ।
औरों के घर आग लगाने का जो सपना,
वो अपने ही घर में सदा खरा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो,
अपने पैरों आप कुल्हाडी नहीं चलाओ।
ओ नादान पडोसी अपनी आँखे खोलो,
आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ।
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है?
तुम्हे मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई।
अंग्रेजों के बल पर दो टुकडे पाये हैं,
माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई?
अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो।
दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से
तुम बच लोगे यह मत समझो।
धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो।
हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो।
जब तक गंगा मे धार, सिंधु मे ज्वार,
अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,
स्वातन्त्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे
अगणित जीवन यौवन अशेष।
अमरीका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध,
काश्मीर पर भारत का सर नही झुकेगा
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा ।
Wednesday, March 23, 2022
हिरोशिमा की पीड़ा || हिन्दी कविता || अटल बिहारी वाजपेयी || PoemNagari
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं || हिन्दी कविता || अटल बिहारी वाजपेयी || PoemNagari
समय से अनुरोध || हिन्दी कविता | अशोक वाजपेयी || PoemNagari
Saturday, March 19, 2022
इस शहर मे | अच्युतानंद मिश्र |हिंदी कविता | PoemNagari
Friday, March 18, 2022
चिरैया धीरे धीरे बोल | अजय पाठक | हिन्दी कविता | PoemNagari
सिर्फ़ | हिन्दी कविता | अनिरुद्ध नीरव |PoemNagari
प्रेम में पड़ी लड़की | हिन्दी कविता |आनंद गुप्ता |PoemNagari
प्रस्तुत कविता आनंद गुप्ता जी द्वारा लिखित है,
कविता का शीर्षक - प्रेम में पड़ी लड़की
लेखक - आनंद गुप्ता
वह सारी रात आकाश बुहारती रही
उसका दुपट्टा तारों से भर गया
टेढ़े चाँद को तो उसने
अपने जूड़े मे खोंस लिया
खिलखिलाती हुई वह
रात भर हरसिंगार सी झरी
नदी के पास
वह नदी के साथ बहती रही
इच्छाओं के झरने तले
नहाती रही खूब-खूब
बादलों पर चढ़कर
वह काट आई आकाश के चक्कर
बारिश की बूँदों को तो सुंदर सपने की तरह
उसने अपनी आँखों में भर लिया
आईने में आज वह सबसे सुंदर दिखी
उसके हृदय के सारे बंद पन्ने खुलकर
सेमल के फाहे की तरह हवा में उड़ने लगे
रोटियाँ सेंकती हुई
कई बार जले उसके हाथ
उसने आज
आग से लड़ना सीख लिया।
भोजपुरी कविता | बापू | कलक्टर सिंह ' केसरी ' | PoemNagari
प्रस्तुत कविता कलक्टर सिंह 'केसरी' जी द्वारा लिखित है ,
प्यारे मित्रों,
सारी दुनिया में सत्य और अहिंसा के जोत जगाने वाले हमारे प्यारे बापू , हमारे राष्ट्रपिता , सचमुच ही एक असामान्य व्यक्तित्व के धनी थे । आज मैं कलक्टर सिंह ‘केसरी’ जी की कविता' बापू ' को सुनेंगे जा रहा हूं जो भोजपुरी भाषा में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखी गई है ।
कइसे मानीं हम जोत चान-सूरुज के उतरल माटी में ?
कइसे मानीं भगवान समा गइलन मानुस के काठी में ?
जर गइल फिरंगिनि के लंका, बाजलि आजादी के डंका,
अइसन अगिया बैताल जगवलन कइसे एक लुकाठी में ?
कइसे मानी हम बापू के परगास नजर से दूर भइल ?
अबहूँ बाड़न ऊ आसमान के चमचमात जोन्हीं अइसन !
जे भूल गइल बापू के उनका खातिर घुप्प अन्हरिया बा।
जे उनुकर नीति निबहले बा उनुका खातिर दुपहरिया बा।
जेकरा भीतर के आँख रही, ऊ बापू के अबहूँ देखी।
जे आन्हर बा उनुका खातिर त परबत बनल देहरिया बा।
हम समुझत बानीं मौत खेल ह, एगो आँखमिचौनी सन।
बापू रहलन इंसान बात ई लागत अनहोनी अइसन।
Thursday, March 17, 2022
भोजपुरी कविता | घूँघट सरकावऽ | गुरुचरण सिंह | PoemNagari
प्रस्तुत कविता गुरुचरण सिंह जी द्वारा लिखित है ।
अत्याचार करल जेतना बड़का गुनाह बा , ओतने बडका गुनाह बा येके सहल ।
अक्सर हमनी के समाज और system में हो रहल भ्रष्टाचार के चुपचाप सहत रहेनीसन , जबना के कारण ई स्वार्थी रूपी दानव और विशाल होके लोगन के जीनगी और उनकर हक के खा जाला ।
अब समय आ गइल बा की हमनी के अपन कर्तव्य और अधिकार के समझ के समाज और देश के विकास में सहायोगी बनी सन , शिक्षा , स्वास्थ्य, रोजगार और संपत्ति चंद लोगन के बापउती नईखे ये पर सबके अधिकार बा ,
येकरा अभाव के कारण कवनो आदमी के सर्वांगीण विकास संभव नईखे ।
आज के ई कविता एक कवि के समाज के प्रति जागरूक उत्तरदायित्व का होला ओके बतावता ।
कविता का शीर्षक - घूंघट सरकावऽ
लेखक - गुरुचरण सिंह
गुनगुनात रहलऽ जिनिगी भर
अबो कवनो गीत सुनातऽ।
मंजूषा में बन्द ओजमय
कविता के घूँघट सरकावऽ॥
पड़े मर्म पर चोट, व्यक्ति
आहत होके गिर जाला
तब उठेला कलम काव्य
कागज पर तबे रचाला
देखे जब निर्बल के संग
दानव के राड़ बेसाहल
कवि तब निर्भयता से छाती
खोल खड़ा हो जाला
दानवता से त्रस्त मनुज के
व्यथा कथा बतलावऽ।
मंजूषा में बन्द................
जब अदिमी रावन के भय से
त्राहि त्राहि चिकरेला
बड़का न्याय प्रिय जोद्धा ना
भयवश जब घर से निकलेला।
मरघट के सन्नाटा में
सब मुँह जाब के सिसके लागे
पोंछे बदे लोर कवि ले के
कलम हाथ में तबे चलेला
कायरता से ग्रस्त मनुज के
तू अमृत संतान बनावऽ।
मंजूषा में................।
देखऽ अब एहिजा रक्षक
भक्षक बन उतरि गइल बा
भइल सिपाही चोर
सब घुसखोर भइल बा।
देश बची कइसे जब रजे
दुसुमन से मिल गइलन
भइल खजाना खाली इ सब
उन्हुके कइल धइल बा
बाड़ऽ काहे चूप इहाँ
आवऽ रहस्य बतलावऽ
मंजूषा...........................।
देखऽ कवनो बेटी के
ईंज्जत निलाम हो जाता
भय से और लालच से अब
बापो गुलाम हो जाता।
निर्भय हो के अत्याचारी
घुम रहल बा सगरो
जंगलराज भइल एहिजा
जिनिगी छेदाम हो जाता।
जनमन के नैराश्य मिटा
आशा के दीप जरावऽ।
मंजूषा............................॥
भला बचाई कइसे ऊ
जे खुदे लूट रहल बा
जनमन के आशा आके देखऽ
अब टूट रहल बा
क्षणिक स्वार्थ में जननेता
बैरी से मिल जाताड़न
घर के भेदी लंका ढाहे
साँचे बात कहल बा
तुलसी चंद कबीर गुप्त
भूषण बन देश बचावऽ।
मंजूषा............................॥
बहुते गीत प्रेम के गवलऽ
महराजन के हक में
बाकिर कहाँ प्रेम उमड़त बा
जनमन के रग-रग में
स्वार्थ प्रेम पर हावी होके
निर्भय बन इठलाता।
खून बहे अदिमिन के देखऽ
सत्ता खातिर जग में
स्वार्थ रहित निश्छलता से
परिपूर्ण प्रेम बरसावऽ।
मंजूषा में बन्द ओजमय
कविता के घूँघट सरकावऽ॥
होली है|तुम अपने रंग में रंग लो तो होली है| हरिवंशराय बच्चन|हिंदी कविता
जो जीवन ना बन सका ! || That Could Not Be Life ! || PoemNagari || Hindi Kavita
कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द जो जीवन ना बन सके बस छाया या उस जैसा कुछ बनके ख...
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प्रस्तुत कविता अशोक वाजपेयी जी द्वारा लिखित है । समय, मुझे सिखाओ कैसे भर जाता है घाव?-पर एक अदृश्य फाँस दुखती रहती है जीवन-भर| स...
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कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द जो जीवन ना बन सके बस छाया या उस जैसा कुछ बनके ख...