Monday, December 7, 2020

Thi Khas Ki Talash | Inside Story Of The Poem | Kishor | PoemNagari

Tuesday, July 28, 2020
#Inside Story Of The Poem "Thi Khas Ki Talash"
 बहुत सारे लोग खास की तलाश में कुछ नहीं कर पाते है,जो काम वे कर सकते है उन्हे लगता है यह तो बहुत आसान है सभी ऐसे कर लेते है मुझे ये नहीं करनी , मुझे  कुछ खास करनी है ,इसके चक्कर में वे कभी भी किसी प्रक्रिया  का  हिस्सा नहीं बनते और खास की तलाश में भटकते रहते हैं वे एक काल्पनिक रेस का हिस्सा बन भागते फिरते हैं,जब तक  उन्हें यह बात पता चलता है,बहुत समय बीत चुका होता है,अब फिर से वापस आना सबकी बस की बात नहीं होती है,और ये लोग अब जीवन भर खुद को  कोसते रहते है  और किसी मजबूरी का हिस्सा बन , बस दुःख पाते है, यह कविता  ऐसी "खास की तलाश "को उजकर करती है और अंत तक जाते जाते एक सहज मार्ग भी सूझा जाती है,,,,,,,


खास की तलास

की मार मार कर  पढ़ाई


पर


कुछ भी कम ना आई


जो था मेरे पास ,


सब लगता था बकवास


क्योंकि


थी खास की तलाश-२


बिन चलना चाहा चलना सीखा


बिन बोले चाहा बोलना


बिन गिरे चाहा संभालना सीखा


अब कुछ भी तो नहीं है


मेरे पास


क्योंकि


थी खास की तलाश -२


अपने छोटे छोटे प्यारे सपनों को ना चिन्हा


मरता मरता मरता


रहा


पर कभी ना जिया


थी बड़े खुशियों की  आश ,


कभी लगी नहीं हाथ,


क्योंकि


थी खास की तलाश-२


जो भी देखा


बस चाहा


पर खुद को ना आजमाया


मन का मर्जी था फर्जी


ना सुनी खुद की अर्जी


क्योंकि


थी खास की तलाश -२


अफसोस नहीं


होश करो


संभावनाओं की


खोज करो


ना कोई बुरा,  ना कोई अच्छा


ना कोई हारा,ना कोई जीता


क्या होना अब हताश


क्योंकि


थी खास की तलाश -२

,,,,समय अभी भी जारी है स्वयं को प्रक्रिया का हिस्सा बनने दे ,और एक बात - खास की तलाश नहीं की जाती बल्कि इसे तराशा जाता है,गिरना और गलतियां करना प्रक्रिया का हिस्सा है ,सही मायनों में यही हमे सीखाते है,तो गिरने और गलतियो   से डरे नहीं ,जीत और हार जैसी कोई चीज नहीं होती है बस होता है तो सिर्फ यही की आप कितनी जीवंतता से जीवन के विभिन्न आयामों को छू पाते है ।

Saturday, December 5, 2020

Chhip-Chhip Asharu Bahane Walo | HindiPoetry |Gopaldas"Neeraj" | PoemNagari

प्रस्तुत कविता गोपालदास "नीरज" जी द्वारा लिखित है।

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों


कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है, नयन सेज पर


सोया हुआ आँख का पानी


और टूटना है उसका ज्यों


जागे कच्ची नींद जवानी


गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों


कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।


माला बिखर गयी तो क्या है


खुद ही हल हो गयी समस्या


आँसू गर नीलाम हुए तो


समझो पूरी हुई तपस्या


रूठे दिवस मनाने वालों, फटी कमीज़ सिलाने वालों


कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर


केवल जिल्द बदलती पोथी


जैसे रात उतार चांदनी


पहने सुबह धूप की धोती


वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों!


चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।

लाखों बार गगरियाँ फूटीं,


शिकन न आई पनघट पर,


लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,


चहल-पहल वो ही है तट पर,


तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों!


लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन,


लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,


तूफानों तक ने छेड़ा पर,


खिड़की बन्द न हुई धूल की,


नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों!


कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!

Etna Mat Chaho Use Vo Bewafa Ho Jayega |HindiPoetry |Bashir Badr |PoemNagari

प्रस्तुत कविता बशीर बद्र जी द्वारा लिखित है ।


 सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा


इतना मत चाहो उसे, वो बेवफ़ा हो जाएगा

हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है


जिस तरफ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा

कितनी सच्चाई से मुझ से ज़िन्दगी ने कह दिया


तू नहीं मेरा, तो कोई दूसरा हो जाएगा

मैं ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तो


ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा

सब उसी के हैं हवा, ख़ुश्बू, ज़मीनो-आसमाँ


मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा

Maa Kah Ek Kahani | HindiPoetry |Maithili Sharan Gupt |PoemNagari

 प्रस्तुत कविता मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा लिखित है।


"माँ कह एक कहानी।"


बेटा समझ लिया क्या तूने मुझको अपनी नानी?"


"कहती है मुझसे यह चेटी, तू मेरी नानी की बेटी


कह माँ कह लेटी ही लेटी, राजा था या रानी?


माँ कह एक कहानी।"

"तू है हठी, मानधन मेरे, सुन उपवन में बड़े सवेरे,


तात भ्रमण करते थे तेरे, जहाँ सुरभि मनमानी।"


"जहाँ सुरभि मनमानी! हाँ माँ यही कहानी।"

वर्ण वर्ण के फूल खिले थे, झलमल कर हिमबिंदु झिले थे,


हलके झोंके हिले मिले थे, लहराता था पानी।"


"लहराता था पानी, हाँ-हाँ यही कहानी।"


"गाते थे खग कल-कल स्वर से, सहसा एक हंस ऊपर से,


गिरा बिद्ध होकर खग शर से, हुई पक्ष की हानी।"


"हुई पक्ष की हानी? करुणा भरी कहानी!"

चौंक उन्होंने उसे उठाया, नया जन्म सा उसने पाया,


इतने में आखेटक आया, लक्ष सिद्धि का मानी।"


"लक्ष सिद्धि का मानी! कोमल कठिन कहानी।"

"मांगा उसने आहत पक्षी, तेरे तात किन्तु थे रक्षी,


तब उसने जो था खगभक्षी, हठ करने की ठानी।"


"हठ करने की ठानी! अब बढ़ चली कहानी।"

हुआ विवाद सदय निर्दय में, उभय आग्रही थे स्वविषय में,


गयी बात तब न्यायालय में, सुनी सभी ने जानी।"


"सुनी सभी ने जानी! व्यापक हुई कहानी।"

राहुल तू निर्णय कर इसका, न्याय पक्ष लेता है किसका?


कह दे निर्भय जय हो जिसका, सुन लूँ तेरी बानी"


"माँ मेरी क्या बानी? मैं सुन रहा कहानी।

कोई निरपराध को मारे तो क्यों अन्य उसे न उबारे?


रक्षक पर भक्षक को वारे, न्याय दया का दानी।"


"न्याय दया का दानी! तूने गुनी कहानी।"

Friday, December 4, 2020

Shakti Ya Saundraya |HindiPoetry|Ramdhari Singh Dinkar |PoemNagari

प्रस्तुत कविता रामधारी सिंह "दिनकर"  जी द्वारा लिखित है।

शक्ति या सौंदर्य 

तुम रजनी के चाँद बनोगे ?


या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?


एक बात है मुझे पूछनी,


फूल बनोगे या पत्थर ?

तेल, फुलेल, क्रीम, कंघी से


नकली रूप सजाओगे ?


या असली सौन्दर्य लहू का


आनन पर चमकाओगे ?

पुष्ट देह, बलवान भूजाएँ,


रूखा चेहरा, लाल मगर,


यह लोगे ? या लोग पिचके


गाल, सँवारि माँग सुघर ?

जीवन का वन नहीं सजा


जाता कागज के फूलों से,


अच्छा है, दो पाट इसे


जीवित बलवान बबूलों से।

चाहे जितना घाट सजाओ,


लेकिन, पानी मरा हुआ,


कभी नहीं होगा निर्झर-सा


स्वस्थ और गति-भरा हुआ।

संचित करो लहू; लोहू है


जलता सूर्य जवानी का,


धमनी में इससे बजता है


निर्भय तूर्य जावनी का।

कौन बड़ाई उस नद की


जिसमें न उठी उत्ताल लहर ?


आँधी क्या, उनचास हवाएँ


उठी नहीं जो साथ हहर ?

सिन्धु नहीं, सर करो उसे


चंचल जो नहीं तरंगों से,


मुर्दा कहो उसे, जिसका दिल


व्याकुल नहीं उमंगों से।

फूलों की सुन्दरता का


तुमने है बहुत बखान सुना,


तितली के पीछे दौड़े,


भौरों का भी है गान सुना।

अब खोजो सौन्दर्य गगन–


चुम्बी निर्वाक् पहाड़ों में,


कूद पड़ीं जो अभय, शिखर से


उन प्रपात की धारों में।

सागर की उत्ताल लहर में,


बलशाली तूफानों में,


प्लावन में किश्ती खेने-


वालों के मस्त तरानों में।

बल, विक्रम, साहस के करतब


पर दुनिया बलि जाती है,


और बात क्या, स्वयं वीर-


भोग्या वसुधा कहलाती है।

बल के सम्मुख विनत भेंड़-सा


अम्बर सीस झुकाता है,


इससे बढ़ सौन्दर्य दूसरा


तुमको कौन सुहाता है ?

है सौन्दर्य शक्ति का अनुचर,


जो है बली वही सुन्दर;


सुन्दरता निस्सार वस्तु है,


हो न साथ में शक्ति अगर।

सिर्फ ताल, सुर, लय से आता


जीवन नहीं तराने में,


निरा साँस का खेल कहो


यदि आग नहीं है गाने में।

Aakho Me Raha Dil Me Utar Kar Nahi Dekha |Bashir Badr | HindiPoetry |PoemNagari

प्रस्तुत कविता बशीर बद्र जी द्वारा लिखित है।

आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा,
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा

बेवक़्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा


जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा

ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा 

यारों के मोहब्बत का यकीन कर लिया मैंने

फूलों में छिपाया हुआ खंजर नहीं देखा 

महबूब का घर हो या की बुजुर्गों की ज़मीनें

जो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा

 पत्थर   मुझे कहता है मेरा चाहने वाला

मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा ।

Thursday, December 3, 2020

Vo Log Bahut Khushkismat The | HindiPoetry |Faiz Ahmad Faiz |PoemNagari

प्रस्तुत कविता फैज़ अहमद फैज़ द्वारा लिखित है ।
   

वो लोग बहुत खुश-किस्मत थे


जो इश्क़ को काम समझते थे


या काम से आशिकी करते थे

हम जीते जी मसरूफ रहे


कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया


काम इश्क के आड़े आता रहा


और इश्क से काम उलझता रहा


फिर आखिर तंग आ कर हमने


दोनों को अधूरा छोड दिया ।

Wednesday, December 2, 2020

Madhupur Ke Ghanshyam|HindiPoetry |Gopaldas"Neeraj"|PoemNagari

प्रस्तुत कविता गोपालदास "नीरज " जी द्वारा लिखित है।

मधुपुर के घनश्याम अगर कुछ पूछें हाल दुखी गोकुल का


उनसे कहना पथिक कि अब तक उनकी याद हमें आती है।

बालापन की प्रीति भुलाकर


वे तो हुए महल के वासी,


जपते उनका नाम यहाँ हम


यौवन में बनकर संन्यासी


सावन बिना मल्हार बीतता, फागुन बिना फाग कट जाता,


जो भी रितु आती है बृज में वह बस आँसू ही लाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

बिना दिये की दीवट जैसा


सूना लगे डगर का मेला,


सुलगे जैसे गीली लकड़ी


सुलगे प्राण साँझ की बेला,


धूप न भाए छाँह न भाए, हँसी-खुशी कुछ नहीं सुहाए,


अर्थी जैसे गुज़रे पथ से ऐसे आयु कटी जाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

पछुआ बन लौटी पुरवाई,


टिहू-टिहू कर उठी टिटहरी,


पर न सिराई तनिक हमारे,


जीवन की जलती दोपहरी,


घर बैठूँ तो चैन न आए, बाहर जाऊँ भीड़ सताए,


इतना रोग बढ़ा है ऊधो ! कोई दवा न लग पाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

लुट जाए बारात कि जैसे...


लुटी-लुटी है हर अभिलाषा,


थका-थका तन, बुझा-बुझा मन,


मरुथल बीच पथिक ज्यों प्यासा,


दिन कटता दुर्गम पहाड़-सा जनम कैद-सी रात गुज़रती,


जीवन वहाँ रुका है आते जहाँ ख़ुशी हर शरमाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

क़लम तोड़ते बचपन बीता,


पाती लिखते गई जवानी,


लेकिन पूरी हुई न अब तक,


दो आखर की प्रेम-कहानी,


और न बिसराओ-तरसाओ, जो भी हो उत्तर भिजवाओ,


स्याही की हर बूँद कि अब शोणित की बूँद बनी जाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

Tuesday, December 1, 2020

Aarambh Hai Prachand |HindiPoetry |Piyush Mishra |PoemNagari

प्रस्तुत कविता पीयूष मिश्रा जी द्वारा लिखित है।

आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड


आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,


आन बान शान या की जान का हो दान


आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!

मन करे सो प्राण दे, जो मन करे सो प्राण ले


वही तो एक सर्वशक्तिमान है,


विश्व की पुकार है ये भगवत का सार है की


युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है !!!


कौरवो की भीड़ हो या पाण्डवो का नीर हो


जो लड़ सका है वही तो महान है !!!


जीत की हवस नहीं किसी पे कोई बस नहीं क्या


ज़िन्दगी है ठोकरों पर मार दो,


मौत अन्त हैं नहीं तो मौत से भी क्यों डरे


ये जाके आसमान में दहाड़ दो !

आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड


आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,


आन बान शान या की जान का हो दान


आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!

वो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव


या की हार को वो घाव तुम ये सोच लो,


या की पूरे भाल पर जला रहे वे जय का लाल,


लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो,


रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो


या की केसरी हो लाल तुम ये सोच लो !!


जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो


प्रेम गीत उस कवि को आज तुम नकार दो,


भीगती नसों में आज फूलती रगों में


आज आग की लपट तुम बखार दो  !!!

आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड


आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,


आन बान शान या की जान का हो दान


आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!

जो जीवन ना बन सका ! || That Could Not Be Life ! || PoemNagari || Hindi Kavita

कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द  जो जीवन ना बन सके बस छाया या  उस जैसा कुछ बनके  ख...