Wednesday, December 2, 2020

Madhupur Ke Ghanshyam|HindiPoetry |Gopaldas"Neeraj"|PoemNagari

प्रस्तुत कविता गोपालदास "नीरज " जी द्वारा लिखित है।

मधुपुर के घनश्याम अगर कुछ पूछें हाल दुखी गोकुल का


उनसे कहना पथिक कि अब तक उनकी याद हमें आती है।

बालापन की प्रीति भुलाकर


वे तो हुए महल के वासी,


जपते उनका नाम यहाँ हम


यौवन में बनकर संन्यासी


सावन बिना मल्हार बीतता, फागुन बिना फाग कट जाता,


जो भी रितु आती है बृज में वह बस आँसू ही लाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

बिना दिये की दीवट जैसा


सूना लगे डगर का मेला,


सुलगे जैसे गीली लकड़ी


सुलगे प्राण साँझ की बेला,


धूप न भाए छाँह न भाए, हँसी-खुशी कुछ नहीं सुहाए,


अर्थी जैसे गुज़रे पथ से ऐसे आयु कटी जाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

पछुआ बन लौटी पुरवाई,


टिहू-टिहू कर उठी टिटहरी,


पर न सिराई तनिक हमारे,


जीवन की जलती दोपहरी,


घर बैठूँ तो चैन न आए, बाहर जाऊँ भीड़ सताए,


इतना रोग बढ़ा है ऊधो ! कोई दवा न लग पाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

लुट जाए बारात कि जैसे...


लुटी-लुटी है हर अभिलाषा,


थका-थका तन, बुझा-बुझा मन,


मरुथल बीच पथिक ज्यों प्यासा,


दिन कटता दुर्गम पहाड़-सा जनम कैद-सी रात गुज़रती,


जीवन वहाँ रुका है आते जहाँ ख़ुशी हर शरमाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

क़लम तोड़ते बचपन बीता,


पाती लिखते गई जवानी,


लेकिन पूरी हुई न अब तक,


दो आखर की प्रेम-कहानी,


और न बिसराओ-तरसाओ, जो भी हो उत्तर भिजवाओ,


स्याही की हर बूँद कि अब शोणित की बूँद बनी जाती है।


मधुपुर के घनश्याम...

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