Tuesday, July 28, 2020

#Inside Story Of The Poem "Thi Khas Ki Talash"

 बहुत सारे लोग खास की तलाश में कुछ नहीं कर पाते है,जो काम वे कर सकते है उन्हे लगता है यह तो बहुत आसान है सभी ऐसे कर लेते है मुझे ये नहीं करनी मुझे  कुछ खास करनी है ,इसके चक्कर में वे कभी भी किसी प्रक्रिया  का  हिस्सा नहीं बनते और खास की तलाश में भटकते रहते हैं वे एक काल्पनिक रेस का हिस्सा बन भागते फिरते हैं,जब तक  उन्हें यह बात पता चलता है,बहुत समय बीत चुका होता है,अब फिर से वापस आना सबकी बस की बात नहीं होती है,और ये लोग अब जीवन भर खुद को  कोसते रहते है किसी मजबूरी का हिस्सा बन बस दुःख पाते है, यह कविता  ऐसी "खास की तलाश "को उजकर करती है और अंत तक जाते जाते एक सहज मार्ग भी सूझा जाती है,,,,,,,

खास की तलास


की मार मार कर  पढ़ाई


पर


कुछ भी कम ना आई


जो था मेरे पास ,


सब लगता था बकवास


क्योंकि


थी खास की तलाश-२


बिन चलना चाहा चलना सीखा


बिन बोले चाहा बोलना


बिन गिरे चाहा संभालना सीखा


अब कुछ भी तो नहीं है


मेरे पास


क्योंकि


थी खास की तलाश -२


अपने छोटे छोटे प्यारे सपनों को ना चिन्हा


मरता मरता मरता


रहा


पर कभी ना जिया


थी बड़े खुशियों की  आश ,


कभी लगी नहीं हाथ,


क्योंकि


थी खास की तलाश-२


जो भी देखा


बस चाहा


पर खुद को ना आजमाया


मन का मर्जी था फर्जी


ना सुनी खुद की अर्जी


क्योंकि


थी खास की तलाश -२


अफसोस नहीं


होश करो


संभावनाओं की


खोज करो


ना कोई बुरा,  ना कोई अच्छा


ना कोई हारा,ना कोई जीता


क्या होना अब हताश


क्योंकि


थी खास की तलाश -२

,,,,समय अभी भी जारी है स्वयं को प्रक्रिया का हिस्सा बनने दे ,और एक बात - खास की तलाश नहीं की जाती बल्कि इसे तराशा जाता है,गिरना और गलतियां करना प्रक्रिया का हिस्सा है ,सही मायनों में यही हमे सीखते है,तो गिरने और गतलिया करने से डरे नहीं ,जीत और हार जैसी कोई चीज नहीं होती है बस होता है तो सिर्फ यही की आप कितनी जीवंतता से जीवन के विभिन्न आयामों को छू पाते है ।





Thursday, July 23, 2020

#Poem Nagari #Hindi Poetry # "Meharbani" by Kishor

# मेहरबानी
गुलाब के पंखुड़ियों से भी नाजुक ,
  दे दिया तन उसको ,
 नयन सुन्दर मृग - नयनी ,
 दे दिया नयन उसको ,
 सुमन मन के खिला दे ,
 मुरझी उपवन सजा दे ,
 खुशियों के समुन्द्र का 
 दे दिया लहर उसको 
जीवन में रस भर दे गजब की , 
आँखों में मस्ती हैं अजब सी 
 होठों पे लाली हैं भोर के किरण की , 
चालों में मस्ती हैं नागिन सी ,
अदाँए अजब मस्त है गजब ,
 जीवन सोमरस , 
लगन लगी मेरी तुझसे लगन,
जैसे मन का मोर नाचे , 
उमड़ता देख बादल के ,
बरस जा झुम के मुझपे ,
 भिंगो तन को मेरे ,
रस रसिया हो जाए तन मेरा , 
अगन बुझ जाए लगन से ।

Wednesday, July 22, 2020

#Poem Nagari # Hindi Poetry " Gumrah"


क्या माँ के प्यार में , आई कमी थी ?
क्या जमाने ने तेरी छिनी खुशी थी ?
क्या रव़ भी तुझसे रूठ गया था ?
क्या सव्र का बंधन  टुट गया था ?
रहम के राह पर  चलने वाले
बदी से नाता  तोड़ने वाले ,
क्यों किया तूने  ऐसा  काम ?
समाज ने तूम्हे किया  बदनाम ,
जब इन्सानियत से रुख मोड़ ली,
तब हैवानियत उसे झकझोर दी ,
आखिर वह बन हीं गया ,
समाज में बेरहम,
आखिर दुराचार की तरफ ,
बढा ही लिया कदम ,
अंततः किसी ने कर दिया उसका काम तमाम,
क्योकि वह था समाज का एक बेरहम इंसान ,
इंसान हो इंसानियत से रहना इस समाज में,
फिर कोई बन न पाए,
उस जैसा बेरहम इस जहान में,
नहीं तो फिर जाग जायेगा हैवानियत इंसान में  ।


Tuesday, July 21, 2020

#माँ

#माँ 
जमाने की हर दुख सह लेती हैं ,  
गमों मे भी घुट - घुट कर रह लेती हैं
ममता की आँचल तुझपे ओढ़कर ,
 तुझको नया एक जन्म देती है  
काल की गाल न आए कभी ,
जिन्दगी चाहे मेरी तू लेले अभी , 
माँगे हर दम यहीं रब से दुआ , 
ना आये कभी मेरे लाल पर बददुआ  
हर दम रहे यह खुशी चैन से , 
जमाने की हर खुशी मिले इसे , 
ममता की मूरत बनी रहती हरदम , 
मिले खुशी या मिलता रहे गम , 
तू है तो अब उसे क्या कमी हैं , 
अन्धेरों में भी मिल रही रौशनी हैं 
 मृत्युंजय बना दूँ हरदम वह चाहे , 
सिकन्दर बना दू हरदम वह चाहे
 सोया है क्यों अब तो जाग जा , 
दिल ना दुःखे माँ का यह जान जा
 जब तक जीवन है कुछ तो किये जा  
मर के भी माँ के दिल में रहे जा 
 बदलती रंग ज़माना पर माँ नहीं बदल सकी 
 माँ के ममता का क्या सागर मुकाबला कर सके ,
 ममता की मंदिर की माँ तु है मुरत , 
इससे पैदा होती हैं दुनिया की हर एक सूरत !

 मां शब्द अपने आप में बहुत ही अनूठा और चमत्कारी है, बच्चों की पहली तोतली बोली  मां  ही माता पिता के कानों में अमृत घोलती है, यह एक ऐसा शब्द है ,जिसमें संसार के सारे भाव व्यक्त हो जाते है,मां करतल ध्वनि से मां बच्चे की मन की हर भाव समझ जाती है, कितना प्यारा, सच्चा और स्नेह संजोए हुए है ये शब्द !Old Aged Home( वृद्धा आश्रम ) का  नाम सुन कर मन आशंकित हो उठता है,जीवन में हर एक जीवित प्राणी को अपने वृद्धावस्था से गुजरी होती है, मै यह नहीं कहता कि ये दिन बहुत दुखदाई और तकलीफदेह होती है,आप बचपन को ही देखे तो मालूम पड़ता है कि जब कोई बच्चा पैदा होता है तो वह कितना आशय होता है ,कहीं पर कुछ भी कर देता है ,क्योंकि उसकी यह कोमल और प्यारा शरीर अभी विकसित नहीं हुआ होता है,माता पिता उसकी इस अवस्था की भली भांति समझते है,और बड़े ही लड़ ,प्यार और दुलार के साथ उसकी परवरिश करते है,एक एक दिन चलकर वह अपनी पैरो पर खड़ा होता है , उसी प्रकार जब मा बाप वृद्ध होते है तो बच्चे ना जाने क्यों उनकी इस स्थिति को नहीं समझ पाते है,और अकेला किसी अनजान जगह में छोड़ आते है ,मै कोई बड़ी  ज्ञान की बात नहीं बता रहा यह हो एक सहज अनुभूति है,मै यहां पर कर्तव्य , अधिकार या नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ रहा हूं, मैं तो बस यही कर रह हूं कि अगर आप उस स्थिति में होंगे तो क्या  आपको अपने प्यारे दोस्तो और संबंधियों का साथ प्यारा नहीं लगेगा ?जीवन बहुत ही प्यारी होती है पर हम छोटे छोटे बातो से अपने ही मित्रो से ताउम्र दूरी बनाए रहते है यह  कहां तक ठीक होता है, हम जीवन  में चाहे जितना भी कुछ क्यों ना कर ले, हमारे सुख और दुःख के साक्षी ,हमे संघर्ष में साथ रहे हमराही हमेशा दिल के करीब होते है,और मां तो हमारी जननी है इस जीवन अस्तित्व और विकास की डोर है, तो इस जीवन  डोर को तोड़ जाने पर,  क्या हम सही मायनों में खुद को सहज रख पाएंगे ?जीवन की सार्थकता जहां तक मैं समझ सका हूं , वह पूर्ण समग्रता से सम्मिलित होने में है , किसी से दूर जाना या दूर करने या रहने में नहीं है ,आप जहां भी हो सब में हो और सब अपने ,मां  का स्मरण जीवन निर्माण और विकास एक अभिन्न अंग है, 
मां  प्यारी मां  

Monday, July 20, 2020

#बैचैन मन

#बेचैन मन 
मै प्यार का परिंदा हूं,
परवाह किसे है किसी का यहां,
पागल हूं, परवाना हूं
रंग एक नहीं ,बहुरंगी की भी जाना हूं,
जज़्बात नए, ज़ख्म भी पाया हूं,
जो जंग रहा वह आज खतम,
ज़ख्मी दिल पर उनका ही कायल हूं,
देखी दुनिया और सबकी यारी ,
होती दर्द बड़ी या गद्दारी ?
ज़ख्म हरा पर हार ना मानी,
जन्म जन्म की साथ हमारी,
पर पगदंडी पर,पर परवाज़ पुरानी ,
ख़ामोशी खत्म नहीं होती ,
पर ख्याल है खुशी की हमारी,
एक बात पूछूं...
क्या मै भी हूं प्यार पुजारी !


मन में बहुत सारी बाते आने लगती हैं,और मन बेचैन होने लगता है ,अपनी वास्तविक पहचान खोने लगती है और स्वयं को हम बहुत कमजोर और लाचार महसूस करने लगते है,यह क्यों होता है पता नहीं ,पर जब हम स्वार्थी होकर सिर्फ़ अपने सुख की बात सोचने लगते है, तो हम खुद को बेचैन और असहाय महसूस करने लगते है, खुद का मन ही खुद के लिए बहुत सारी परेशानियां पैदा करने लगता है,और हम उसने उलझते चले जाते है यदि ऐसे ही बेकार की बातें लगातार कुछ दिनों तक मन को परेशान करती रहे तो निश्चित तौर पर हम अपने मानसिक संतुलन को बैठेंगे ऐसा आभास होता है लेकिन मुझे इस बात का भी यकीन है कि अगर कोई समस्या उत्पन्न हो रही है तो मन जरूर ही इसका समाधान ढूंढ निकालेगा या कुछ ऐसी समझदारी आएगी जो हमें भटकने से बचा लेगी
अभी कुछ देर पहले जब मैं चुपचाप अपने कमरे में अपने बीते समय और उसके सुनहरे पल के बारे में सोच रहा था तो मन में बहुत उथल-पुथल मच रही थी मन फिर से तरस उठता है उन सुनहरे पलों को फिर से जीने को मगर यह  मुमकिन ऐसा नहीं लगता है तब एक सिरहन सी दिलो दिमाग और इस शरीर में  दौड़ उठती है  , एक व्याकुलता और बाद में हताशा के साथ मन बैठने लगता है और खोने लगता है निराशा के घनघोर अंधेरे में चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा कहीं कोई आशा के दीपक भी नहीं दिखाई पड़ते तब इस जीवन के प्रत्येक नाउम्मीदी में भी पैदा होती है और मैं क्यों जीवित हूं इस बात की भी चिंता होती है और मन अंदर ही अंदर खुद को मारने लगता है और धड़कन ए थमने लगती है आखिर यह जीवन किस काम का जिसमें किसी का प्यार ना हो कोई ऐसा ना हो जो मेरे लिए खुश होता हो जब जीवन में कोई ऐसा साथी ना हो जो आपके साथ हर समय एक विश्वास और प्यार की परछाई बनकर आपके साथ हर समय एक विश्वास और प्यार की परछाई बनकर आपके कदम कदम से आपके जीवन यात्रा का हमसफर बने जो मन खुद को क छोड़ता है और जीने की उम्मीद है धीरे-धीरे खत्म होने लगती है अभी मैं जवान हूं पढ़ा लिखा  एक होनहार लड़का हूं अभी जीवन की सारी संभावना है मेरे लिए संभव है अभी मैं दुनिया की हर मुकाम हासिल कर सकता हूं जो मेरे मन में है पर किसके लिए उतनी साहस करू आखिर मैं क्यों इतनी जी जान लगाऊ और सारी दुनिया को अपने कदमों में झुकाऊं,
 यह  एक ऐसा उम्र होता है जब हमें एक ऐसी दोस्त की जरूरत होती है जो हमें हमारे लक्ष्य के प्रति हमेशा जागरूक रखें जो हमें निराशा से उबार कर ,हमारे जीवन में हर रोज एक उम्मीद का उत्साह बनकर आए जीने का मन करें और उसके सपनों के लिए बार-बार हम संघर्ष कर सके ,मरते दम तक जीवन की आखिरी सांसे भी जब छोटे हैं तो आंखों में पानी हो पर मन में संतोष हो कि मेरा जीवन सार्थक रहा और फिर से जीने की उम्मीद के साथ इस दुनिया से हम अलविदा ले ,क्या ऐसा संभव है  ? क्या मेरे जीवन में भी ऐसा कुछ होगा ?  पता नहीं मैं यह नहीं कहता कि मेरे जीवन में कोई खुशी नहीं आई, पर हां मैं उन लोगों की खुशियों के लिए फिर से वापस वहां नहीं जा सकता इस पागल मन को समझाने वाला शायद मिले और जीवन फिर से सपने सजाए और खुश होकर जीवन का आनंद लें ।

Sunday, July 19, 2020

# बाढ़ आया

# बाढ़ आया 
नदियां उफनी, सड़कें टुटी, 
पुल- पुलिया ले गई  बहाय,
घर में पानी  आते देख,
हाय - हाय अब सब चिल्लाए !
प्राण रक्षक जल  बनी भक्षक
महाप्रलय सी  बढ़ती जाए.....
   
बाढ़ शब्द का नाम सुन कर  मन में एक ऐसी छवि आती है ,जिसमें चारों तरफ सिर्फ पानी ही पानी हो, जहां तक नज़र जाती है एक अथाह समुंद्र सा प्रतित होता है, आज देश के कई इलाकों में बाढ़ अपनी कहर बरसा रही है , उड़ीसा,पश्चिम बंगाल ,केरल और बिहार  सहित देश के कई राज्यों में तो हर साल ये भारी तबाही लाती है,इस साल भी हमे इसके बिकराल , भयावह और प्रलयकारी रूप देखने को मिल रही है ,  बिहार के साथ साथ देश की राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं है वहां का स्थिति भी बहुत ही निराशजनक है ,
  इस साल  हमें बहुत ही विषम परिस्थितियों की सामना करनी पड़ रही है, पहले तो  महामारी की मार और अब बाढ़  की प्रलयकारी  रूप देखने को मिल रही है , इन दोनों ही विशाल संकट के सामने आज भी इंसान बौना ही दिखाई देता है ,भले ही हम उन्नत तकनीक से लैस होते जा रहे है पर प्रकृति जब अपनी विनाशकारी रूप में सामने आती है तो हमारी एक नहीं चलती ,प्रकृति के गोद में पले बढे हम सभी जब अपनी स्वार्थसिद्धि में अंधे होकर  बिन सोचे समझे ,आगे बढ़ते जाते है तो हमे नई नई आपदाओं का भी सामना करना पड़ता है,खैर इंसान तो सदियों से चुनौतियों पर विजय पाते आ रहा है परंतु जब तक हम कोई समाधान सुझाते है तब तक हजारों जिंदगियां विपदाओं के की भेंट चढ़ जाती है ,तो क्या हम समय रहते उन्हें समझदारी से सुलझा नहीं सकते ? आज भी देश के कई हिस्सों में जो आपदाएं आए हैं ,उसके प्रभाव कई हद तक कम किया जा सकते था ,अगर सही प्रबन्धन से लोग और सरकार मिलकर सही दिशा में काम करते , कुछ स्वार्थी लोग सिर्फ अपनी जेब भरने में हजारों के प्राण बेपरवाही से ले लेते है ,ये नहीं कि उनका नुकसान नहीं होता वो भी मरते है और साथ में हजारों जिंदगियों के मौत के कारण बनते हैं, थोड़ी जागरूकता से देखे तो जरूर समझ में आ जाएगा कि दूसरे के हक को छीन कर समृद्ध नहीं बाना जा सकता , जबकी सुख और समृद्धि परस्पर सहयोग और सबके साथ सबकी समृद्धि से ही संभव है , राज्य सरकारें और केंद्र सरकार एवं सरकार की नीतियों को कार्यान्वित करने वाले विभिन्न अंगो के लोगो की ईमानदारी बहुत सारी परेशानियां कम कर सकती है ,देश  में बनाए गए करोड़ों के लागत से बने पुल कुछ ही महीनों में धराशाही होकर बिखर जाते है ,बाढ़ की पहली घार  में ही जवाब दे देते है, हजारों लोगों पर इस  तरह से आई संकट के कारण  का जिम्मवर कौन है ? प्रकृति या स्वयं मनुष्य ! 


Saturday, July 18, 2020

# मजदूर

आज  इस २१ वीं सदी में  मंगल यात्रा कर जीवन के नय आयाम की खोज हमे उम्मीद और उत्सुकता से भरता है, वही दुसरी तरफ हमारे समाज में  आज भी बहुत सारे लोग बिन खाएं हर रोज सोते है ,उनके रहने के लिए घर नहीं है ,पीने के लिए साफ पानी नहीं है,जीवन को किसी तरह काट रहे हैं ,आप वैसी कल्पना भी नहीं कर सकते जैसे की उन्हें  हर रोज रहनी पड़ती है,बहुत ही दुखदाई जीवन, इस स्थिति में हमारे ही लोगो को  देख कर ,सारी की सारी प्रगति में कुछ कमी का आभास नहीं होता !
आज सारी दुनिया इस महामारी के चपेट में आकर अपने ही घर से निकल नहीं पा रही है , वही हमारे देश के हजारों मजदूर जो बेघर है ,उनका क्या ??     मज़बूरी में मजदूरी कर अपना जीवन बिताने वाले हजारों श्रमिक आज किस हाल में है इसकी  परवाह  किसे हैं ??  सरकार कुछ मदद भी करती है तो सबके लिए प्रयाप्त नहीं होती, आज हालत यह है कि दुःख और तकलीफ के अथाह महासागर में फंसा मजदूर महामारी के मुंह में आने से पहले भुखरूपी दानव का निवाली बनता जा रहा है और जो थोड़े बचते तो  उनके चौखट पर  महामारी मुंह बाए पहले से खड़ी है  ,उनके इस हालत के सारे के सारे सिर्फ वही जिम्मवार है या कोई और भी है, यह सवाल है  ??
 # मजदूर 
मजदूर हुआ मजबूर
है जिसका यह कसूर!
खाएं -पिए बिन सोए -जागे
मेहनत करता रहा भरपूर
महल बनाए, बड़े अटारी
समझ ना पाया दुनियादारी
अब मरने को मजबूर
है जिसका यह कसूर !
मजदूर हुआ मजबूर ।

Friday, July 17, 2020

# महामारी # Covid-19

# महामारी # Covid-19
ऐसा विश्वव्यापी नरसंहार का दृश्य मानव विकास के  इतिहास में कभी भी देखने को नहीं मिला है,जितनी निस्ठुरता और निर्ममता से ये लोगों के प्राणों की बलि  ले रही है, जैसे मानो की साक्षात महाकाल इस कलयुग के बिनाश को तत्पर हो,मानव अपने प्राणों के रक्षा के लिए विवश है, लाखों जीवन भस्म हो गए और ये संख्या कई गुणा के रफ्तार से बढ़ती जा रही है कब और कहां थमेगी इसका कोई अनुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो सका है ,मानव विकास चांद, सूरज और सौर मंडल के कई ग्रहो तक पहुंच चुका है पर मानव अस्तित्व पर ख़तरा बनी ये महामारी , इंसान और अज्ञात की दूरी को बनाए हुए है,,
#Poem # महामारी # Covid-19
प्राण संकट में पड़ा,
प्रतिपल ये जीवन ले रहा,
चुनौतियां अपार है
चरम सीमा पर काल है
अदृश्य और विकराल है
संपूर्ण धारा पर  हाहाकार है 
 मानव  हुआ लाचार है
बढ़ता जा रहा प्रहार है
प्रतिकार, प्रतिकार, प्रतिकार है
महामारी का ये मार है ।
,,,, 
इस पृथ्वी पर मौजूद Flora और Fauna के साथ बहुत सारे जीवन सहित और जीवन रहित विविधताओं की उपस्थिति का अपना अपना महत्त्व है या फिर ऐसा कहे की इन सबका सम्मिलित रूप ही हम है , जीवन का निर्माण और विकास इन्हीं सभी का सुनियोजित प्रबन्धन है ,जब मानव स्वयं को  सबसे समझदार प्राणी की श्रेणी  रखता है तो यह नहीं भूलना चाहिए कि इस पृथ्वी पर जितना उसकी मौजूदगी अनिवार्य है बिल्कुल उतना ही अन्य प्राणियों का भी होना अनिवार्य है,,,
इस चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में एक तरफ इंसान अपने मौजूदा स्थिति से निपटने में परेशान है और घर से निकाल पाना भी दूभर हो रहा है तो दुसरी ओर प्रकृति में मौजूद दुसरे जीव जंतु , पंक्षी और पेड़ पौधे बहुत तेजी से फल फूल रहे है,,,
अभी सारा देश आर्थिक मंदी के दौर से गुज़र रहा है,इस समय खुद को जीवित रख पाना ही सबसे बड़ा सम्पत्ति है,,,विकास की पहिया रुक गई हैं अब मानव विकास देश ,रंग रूप , जाति, सम्प्रदाय के आधार से नहीं बल्की सम्पूर्ण पृथ्वीवासियों के  जीवन विकास से जुड़ी हो गई है,इस असंख्य ब्रह्माण्ड में एक कण से सामान हमारी पृथ्वी और इस पर रहने वाले हम लोग समन्वय और सद्भभाव के साथ एक जुट होकर जरूर इस समय से भी उबर जाएंगे,मानव विकास की श्रृंखला देखी जाए तो पता चलता है हम बहुत सारे विषम परिस्थितियों होने पर भी साहस और उम्मीद के साथ बढ़ते रहे है।



Thursday, July 16, 2020

#Poem # जो मन के पास होता है !

वह खास होता है ,
जो मन के पास होता है
है दुनिया रंग बिरंगी
पर उसी पर नाज होता है,
वह खास होता है 
जो मन के पास होता है !

#A mysterious morning.

# एक रहस्मयी सुबह 
सुबह के पांच बजे होंगे ,
 जब मेरी आंखे खुली फिर मैने देखा- एक तरफ मेरा मोबाइल तो दूसरी ओर मेरा हेडफोन पड़ा था  ,,
मुझे कुछ ऐसा लगा जैसे कि बहुत सारी उलझने सुलझ गई हो , मानो जैसे वर्षों के मुसीबतो से एक पल में छुटकारा हो गया हो,अथाह अनसुलझी बेचैनियो का अंत हो गया हो ,यह अनुभव बहुत ही सुखद और मनभावन था, पहली बार ऐसा लगा जैसे कि मै अपनी सांसे अपनी मर्जी से  पा रहा हूं ,
किसी अज्ञात अंधकार में उलझे रूह को रूहानी अनुभव हो रहा हो,फिर मुझे ख्याल आया आखिर अब तक मै बेमतलब की बेचैनियो में क्यों उलझा रहा ,,,,
फिर बहुत ही सहजता से  मैंने देखा उन सभी कारणों को   तो पता चला मेरा मन मेरे ही विरूद्ध वर्षों से ,मुझसे ही काम करते आ रहा है ... अदृश्य ताकते जो दिखती हो नहीं है पर मौजूद हमेशा रहती है, तभी तो हमे कभी अच्छा तो कभी बुरा अनुभव होता है, जब हमारी भावनाएं सुखद होती है तो हमें सारी दुनिया खूबसूरत लगती है ,हमे अपने आसपास के लोगों के लिए करूणा , प्रेम और संवेदना महशुस करते हैं ,,,,
परंतु जब यह हमारे खिलाफ काम करता है तो हमारी बैचैनी, दुःख, असहजता और विनाश का कारण कोई दूसरा नहीं स्वयं हम  ही होते है ,,,,,
आखिर कोई भला क्यों चाहेगा की उसका ही मन उसके विरुद्ध काम करे !!
तो इसका जवाब यह है कि जब हम अपनी भावनाओं के सुख और दुःख का कारण दूसरे को समझने लगते हैं,तब हम अपनी स्वाभाविक गुण- क्षमा ,दया ,करूणा और समर्पित को भूल जाते हैं,इस शरीर के नश्वरता का ख्याल गुम हो जाता है , ,,,,
हमे इस शरीर और मन के अद्भूत और रहस्यमई शक्तियां का उपयोग मानवता के विकास और जीवन के अलग अलग आयाम को जीने और जानने  के लिए करनी चाहिए,,,
   यह रहस्यमई अनुभव वास्तव में बहुत खास रही ,हम जाने अनजाने में हमारे आस पास बेमतलब के नासमझी से भरे बहुत सारी चीजे देखते और सुनते रहते हैं - जंहा एक तरफ सारी दुनिया Technology और Information  के विकास से आसान बनती जा रही है तो दूसरे तरह नासमझी Misinformation के दुषपरिणाम भी देखने को मिल रहे है ;
और हा मेरे रहस्यमई और सुखद सुबह का भी राज यही था  कि मैं उस दिन बेमताब के सूचनाओं को भूल गया था ,
और जीवन को अनुभव कर रहा था....

 

#Unexpected Journey of Bus

इस बार का सफर बहुत ही खूबसूरत था बहुत ठंड भी लग रही थी लेकिन ऊपर से चारों ओर का नजारा भी सुंदर दिख रहा था ऐसा लग रहा था मानो की सारी धरती पेड़ पौधे, उड़ती हुई चिड़िया ,यह नदियां ,सड़के सब कुछ मेरे साथ किसी अनोखी सैर पर निकले हो , थोड़ी ही देर में जब ठंड के कारण आंखों से आंसू निकलने लगे ,तो मन बेचैन होने लगा ....
फिर मैंने अपनी बैग से हाफ बंडी वाला जैकेट निकाल कर पहन ली ,तब जाकर राहत मिली , एक बात और मैं इसके पहले शायद ही कभी बस की छत पर बैठा था, मैं काफी डरता हूं इसलिए छत पर बैठकर सफर करना, मेरे बस की बात नहीं है परंतु समस्या यह थी कि जब मैं मामा जी के घर से अपने घर आया ,तो उस समय से फिर मुझे मोतिहारी आना अच्छा नहीं लग रहा था क्योंकि मैं थक गया था ,परंतु मुझे आज ही पहुंचना था इसलिए घर वालों ने चावल ,दाल ,आटा, मसाले एवं एक बोतल दूध मेरे साथ दे दिया उसे भी लाना था अब मैं अपने चौक पर खड़े होकर बस का इंतजार करने लगा, समय काफी बित चुका था ,अचानक एक बस आती हुई दिखाई दी मैं खुश हुआ ,चलो आखिरकार बस तू आई ,लेकिन यह क्या  !बस पूरी तरह भरी हुई थी ,कंडक्टर ने आने का इशारा किया ,मैंने सीधे मना कर दिया ,जगह नहीं है तो मैं नहीं जाऊंगा, पर वह बहुत ही प्यार से बोला -"इसके बाद कोई भी बस नहीं है ,मैं आदापुर तक आपको सीट दिला दूंगा ,भरोसा रखिए "उसने मेरे दाल -चावल की बोरी को पीछे के डिक्की में रख दी,थोड़ी देर के लिए ऊपर जाकर बैठने का इशारा किया मजे की बात यह है कि घर से लेकर मोतिहारी तक बस में लोगों की संख्या बढ़ती गई ,अब मैं चुपचाप छत पर बैठे सुंदर और मनभावन इस प्रकृति को अनुभव करता रहा....
सफर अभी भी जारी है ०००००००००००

जो जीवन ना बन सका ! || That Could Not Be Life ! || PoemNagari || Hindi Kavita

कविता का शीर्षक - जो जीवन ना बन सका ! Title Of Poem - That Could Not Be Life ! खोखले शब्द  जो जीवन ना बन सके बस छाया या  उस जैसा कुछ बनके  ख...