बहुत सारे लोग खास की तलाश में कुछ नहीं कर पाते है,जो काम वे कर सकते है उन्हे लगता है यह तो बहुत आसान है सभी ऐसे कर लेते है मुझे ये नहीं करनी मुझे कुछ खास करनी है ,इसके चक्कर में वे कभी भी किसी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनते और खास की तलाश में भटकते रहते हैं वे एक काल्पनिक रेस का हिस्सा बन भागते फिरते हैं,जब तक उन्हें यह बात पता चलता है,बहुत समय बीत चुका होता है,अब फिर से वापस आना सबकी बस की बात नहीं होती है,और ये लोग अब जीवन भर खुद को कोसते रहते है किसी मजबूरी का हिस्सा बन बस दुःख पाते है, यह कविता ऐसी "खास की तलाश "को उजकर करती है और अंत तक जाते जाते एक सहज मार्ग भी सूझा जाती है,,,,,,,
खास की तलास
की मार मार कर पढ़ाई
पर
कुछ भी कम ना आई
जो था मेरे पास ,
सब लगता था बकवास
क्योंकि
थी खास की तलाश-२
बिन चलना चाहा चलना सीखा
बिन बोले चाहा बोलना
बिन गिरे चाहा संभालना सीखा
अब कुछ भी तो नहीं है
मेरे पास
क्योंकि
थी खास की तलाश -२
अपने छोटे छोटे प्यारे सपनों को ना चिन्हा
मरता मरता मरता
रहा
पर कभी ना जिया
थी बड़े खुशियों की आश ,
कभी लगी नहीं हाथ,
क्योंकि
थी खास की तलाश-२
जो भी देखा
बस चाहा
पर खुद को ना आजमाया
मन का मर्जी था फर्जी
ना सुनी खुद की अर्जी
क्योंकि
थी खास की तलाश -२
अफसोस नहीं
होश करो
संभावनाओं की
खोज करो
ना कोई बुरा, ना कोई अच्छा
ना कोई हारा,ना कोई जीता
क्या होना अब हताश
क्योंकि
थी खास की तलाश -२
,,,,समय अभी भी जारी है स्वयं को प्रक्रिया का हिस्सा बनने दे ,और एक बात - खास की तलाश नहीं की जाती बल्कि इसे तराशा जाता है,गिरना और गलतियां करना प्रक्रिया का हिस्सा है ,सही मायनों में यही हमे सीखते है,तो गिरने और गतलिया करने से डरे नहीं ,जीत और हार जैसी कोई चीज नहीं होती है बस होता है तो सिर्फ यही की आप कितनी जीवंतता से जीवन के विभिन्न आयामों को छू पाते है ।